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इसलिए सिरसा का चुनाव हारे गोपाल कांडा

गोपाल कांडा 

सिरसा विधानसभा क्षेत्र में गोपाल कांडा की हार के पीछे कई कारण थे, लेकिन विशेष रूप से नगरपरिषद (कमेटी) का भ्रष्टाचार और काम न होने की स्थिति ने उनकी हार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। सिरसा नगरपरिषद, जिसे आमतौर पर कमेटी कहा जाता है, ने शहरवासियों को पिछले 5 वर्षों में लगातार तंग किया। लोगों के काम समय पर नहीं हो रहे थे, और भ्रष्टाचार के मामलों ने माहौल को और भी बिगाड़ दिया।

नगरपरिषद का भ्रष्टाचार और निराशा
नगरपरिषद के अधिकारियों द्वारा एनडीसी (नॉन-डिवलपमेंटल चाजेस), हाऊस टैक्स, प्रॉपर्टी आईडी और नक्शों के नाम पर शहरवासियों को निरंतर परेशान किया गया। जो लोग अधिकारियों को रिश्वत देने के लिए तैयार थे, उनका काम तुरंत हो जाता था, लेकिन आम जनता के लिए काम कराना एक संघर्ष बन चुका था। इसके कारण, शहरी क्षेत्र के लोग गोपाल कांडा और उनकी टीम से बहुत नाराज थे।

गोपाल कांडा का ध्यान न होना और भ्रष्टाचार
गोपाल कांडा अक्सर शहर से बाहर रहते थे और उनके छोटे भाई गोबिंद कांडा नगरपरिषद के कामकाज को देखते थे। लेकिन वे भी कमेटी के अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं रख सके। इसके कारण नगरपरिषद में भ्रष्टाचार बढ़ता गया, और ठेकेदार भी अधिकारियों के चहेते बन गए। कभी 40 प्रतिशत कमीशन के आरोपों में घिरे ठेकेदार अचानक अधिकारियों के करीबी बन गए, जो गोपाल कांडा के चुनावी कैंपेन में भी सक्रिय रहे। इसका जनता में नेगेटिव प्रभाव पड़ा।

विकास के दावे और शहर की बदहाली
गोपाल कांडा लगातार विकास के मुद्दे पर बात करते रहे, लेकिन शहर की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। सड़कें, गलियां, जल निकासी, और स्वच्छता जैसे बुनियादी मुद्दों पर शहर की हालत बद से बदतर होती गई। सरकारी खजाने का दुरुपयोग कर दिया गया और विकास के नाम पर करोड़ों रुपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। इससे लोग आहत हो गए और उनके मन में यह विश्वास गहरा हो गया कि गोपाल कांडा और उनके प्रशासन के पास शहर की समस्याओं का समाधान नहीं है।

गोपाल कांडा की हार: भ्रष्टाचार और कमेटी का प्रभाव
गोपाल कांडा की हार में नगरपरिषद (कमेटी) के अधिकारियों की भ्रष्टाचारपूर्ण नीतियों का बड़ा हाथ था। यदि वे इस भ्रष्टाचार को नियंत्रण में रखते और अधिकारियों पर कड़ी नजर रखते, तो शायद उन्हें शहरी क्षेत्र से बड़ी लीड मिलती। उनके शहर से बाहर रहने और कमेटी के अधिकारियों पर नियंत्रण न रखने के कारण उन्हें 1842 वोटों से हार का सामना करना पड़ा।

लोगों की उम्मीदें और निराशा
शहरवासी गड्ढों से भरी सड़कों, जलभराव की समस्याओं और कमेटी के चक्कर काटने के बीच 5 साल गुजारने के बावजूद किसी भी प्रकार के विकास को महसूस नहीं कर पा रहे थे। इससे लोगों का गुस्सा और नाराजगी बढ़ी। जबकि गोपाल कांडा और उनके समर्थक विकास के दावे करते रहे, वास्तविकता में लोग उस बदलाव को महसूस नहीं कर पाए।

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