logo

चोरमार गुरुघर साहिब: जहां पड़े थे श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के पावन चरण

का

चोरमार गुरुघर साहिब: जहां पड़े थे श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के पावन चरण


सिरसा मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित गुरुद्वारा चोरमार साहिब अछूती आस्था का केंद्र है। यह वो पवित्र स्थान है जहां पर दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के पावन चरण पड़े थे। इस गुरुघर में हर वक्त लंगर चलता रहता है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित आस्था के इस केंद्र में आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। गुरुघर में एक पवित्र सरोवर बना हुआ है।
दरअसल राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 9 पर सिरसा और डबवाली के बीच गुरुद्वारा चोरमार साहिब है।

ऐसा माना जाता है कि एक बार एक चोर ने रात्रि के समय गुरु जी का घोड़ा चोरी कर लिया। चोरी करने के बाद चोर अंधा हो गया। वह गुरुघर से बाहर नहीं निकल सका। उस समय यह पूरा क्षेत्र सुनसान व जंगल के रूप में था। सवेरा होते ही सेवादारों ने चोर को पकड़ कर गुरु जी के समक्ष पेश किया। चोर की ओर से अपनी गलती मानने पर गुरु जी ने उसे माफ कर दिया। इस प्रकार उक्त चोर का उद्धार हुआ व उस व्यक्ति के अंदर का चोर मर गया। इसी कथा के कारण इस स्थान का नाम चोरमार पड़ा व जिस स्थान पर उस समय तालाब (जोहड़) था, उस स्थान पर आजकल चोरमार गुरुद्वारा का पवित्र सरोवर बना हुआ है।

 इस क्षेत्र के अलावा पंजाब व राजस्थान से भी बड़ी संख्या में साध संगत इस गुरुद्वारा साहिब में अपनी मनोकामना पूरी होने पर माथा टेकने लिए आती है।  यह गुरुद्वारा साहिब राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 10 नई दिल्ली-फाजिल्का सडक़ पर सिरसा से 35 किलोमीटर दूर गुरुद्वारा चोरमार साहब लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। इस क्षेत्र की साध-संगत को पक्का यकीन है कि यह गुरुद्वारा साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की स्मृति में बना हुआ है।

बाद में इसी गुरुद्वारे के नाम पर सिरसा-डबवाली रोड पर एक बड़ा गांव चोरमार बस गया है। राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 10 से गुजरते अधिकांश वाहन, चाहे वह कारें हों, ट्रक अथवा बस, गुरुद्वारे के सामने रूक कर इस गुरुद्वारे में माथा टेक कर आगे निकलते हैं। गुरुद्वारा चोरमार साहब का लगभग 20 वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार करके इस बड़ा सुंदर नया रूप दिया गया। इसका मु य द्वार अत्यंत मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करता है। इस मुख्य  द्वार को इतना सुंदर ढंग से निर्मित किया गया है कि राष्ट्रीय राजमार्ग से निकलने वाले उन लोगों का भी ध्यान आकर्षित होता है, जो इस गुरुद्वारे के महत्व से अनभिज्ञ होते हैं। चोरमार स्थित इस गुरुद्वारे के संबंध में यह प्रचलित है कि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी जब इस क्षेत्र में आए थे, तो वे शिकार खेलते हुए यहां तक आ पहुंचे। इस स्थान पर उस समय पानी का एक जोहड़ था, इस जोहड़ का पानी गुरु जी के साथ आए सिखों ने पिया व अपने घोड़ों को पिलाया। इस स्थान की कार सेवा आजादी से पूर्व किंगरे निवासी सेठ संत सिंह अग्रवाल नामक एक गुरुसेवक ने सेवा शुरू करवाई थी। उस समय यहां एक छोटा सा गुरुद्वारा बनाया गया था, परंतु आजादी के पश्चात गुरुद्वारा साहब की सेवा महाराज बलवंत सिंह ने करके इस स्थान पर गुरुद्वारा व सरोवर बनाया। गुरुद्वारा साहब मेंं हर माह अमावस के दिन भव्य मेला लगता है तथा


हर वर्ष माधी व बैसाखी पर मेले लगते हैं जिनमें हजारों की संख्या  में साध संगत भाग लेती है। इस गुरुद्वारा में दिन-रात लंगर चलता रहता है तथा प्रतिदिन सैकड़ों यात्री लंगर ग्रहण करते हैं। गुरुद्वारा साहिब की प्रबंधक कमेटी द्वारा दशमेश हाई स्कूल व एक गुरुवाणी की शिक्षा का विद्यालय चलाया जा रहा है, जिसमें सैकड़ों विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। गुरुद्वारा के एक भाग में सिख इतिहास से संबंधित एक संग्रहालय का निर्माण किया गया है, जिसमें सिख इतिहास से संबंधित सैकड़ों चित्र लगाए गए हैं। इस गुरुद्वारा साहिब में आने वाली साध-संगत इस सिख अजायबघर को जरूर देख कर जाती है।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now