भारत की आजादी का सफर: 1946 से 1947 तक की महत्वपूर्ण घटनाएं,गांधी जी का अहिंसा के लिए संघर्ष और विभाजन की दास्तान
भारत की आजादी का सफर: 1946 से 1947 तक की महत्वपूर्ण घटनाएं
भारत में आजादी की लहर
1946 से 1947 का दौर भारतीय इतिहास का सबसे उथल-पुथल भरा समय था। अंग्रेजों के भारत छोड़ने का निर्णय लगभग तय हो चुका था। सवाल यह नहीं था कि आजादी मिलेगी या नहीं, बल्कि यह था कि यह कब और कैसे मिलेगी। चार बड़े घटनाक्रमों ने इस आजादी के संघर्ष को नई दिशा दी:
- 1942 का 'भारत छोड़ो आंदोलन'
महात्मा गांधी के नेतृत्व में करोड़ों भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की। - नेताजी सुभाष चंद्र बोस और इंडियन नेशनल आर्मी का संघर्ष
1944-45 में हुए संघर्ष और रेड फोर्ट ट्रायल्स ने ब्रिटिश शासन को बड़ा झटका दिया। - रॉयल नेवी विद्रोह
1946 में इंडियन सैनिकों द्वारा ब्रिटिश नेवी में विद्रोह का उदाहरण पेश किया गया। - द्वितीय विश्व युद्ध
युद्ध के बाद ब्रिटिश अर्थव्यवस्था चरमरा गई, जिससे भारत पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो गया।
कैबिनेट मिशन और पॉलिटिकल समीकरण
1945 के चुनावों के बाद ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने भारत को स्वतंत्रता देने का वादा किया। 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया, जिसका उद्देश्य तीन मुख्य बिंदुओं पर काम करना था:
- एक नई कार्यकारी परिषद का गठन
- भारतीय संविधान का निर्माण
- आजादी के बाद सत्ता के हस्तांतरण की रूपरेखा तय करना
कैबिनेट मिशन ने भारत को तीन प्रांतों में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा:
- सेक्शन A: हिंदू बहुल क्षेत्र
- सेक्शन B: पश्चिमी मुस्लिम बहुल क्षेत्र
- सेक्शन C: पूर्वी मुस्लिम बहुल क्षेत्र
जिन्ना ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, लेकिन कांग्रेस इसे लेकर सहमत नहीं थी।
डायरेक्ट एक्शन डे: भारत विभाजन की शुरुआत
29 जुलाई 1946 को मोहम्मद अली जिन्ना ने "डायरेक्ट एक्शन डे" की घोषणा की। 16 अगस्त को बंगाल इसका मुख्य केंद्र बना, जहां मुस्लिम लीग की सरकार थी। मुख्यमंत्री हुसैन शाहिद सुरावर्दी के शासन में यह दिन दंगों और हिंसा का पर्याय बन गया।
- हिंसा का असर:
- 16 से 19 अगस्त के बीच 6,000 से अधिक लोग मारे गए।
- 15,000 से अधिक घायल हुए।
- कलकत्ता हिंसा का मुख्य केंद्र बन गया।
1946 के चुनाव और कांग्रेस-मुस्लिम लीग का टकराव
1946 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने 11 में से 9 प्रांतों में जीत दर्ज की, जबकि मुस्लिम लीग ने बंगाल और सिंध में बहुमत हासिल किया। इसके बावजूद जिन्ना ने मुसलमानों का इकलौता नेता होने का दावा किया।
माउंटबेटन योजना और विभाजन
1947 में भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की योजना तैयार की। लेकिन जिन्ना के पाकिस्तान की मांग और कांग्रेस के एकजुट भारत के सपने के बीच मतभेद गहराते गए।
"फ्रीडम एट मिडनाइट" और वेब सीरीज
डोमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस की प्रसिद्ध किताब फ्रीडम एट मिडनाइट ने इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से बताया है। इसी पर आधारित एक वेब सीरीज भी हाल ही में रिलीज हुई है, जो उस दौर की सच्चाई को बयां करती है।
नतीजा: विभाजन और आजादी
15 अगस्त 1947 को भारत ने आजादी तो हासिल की, लेकिन देश का विभाजन भी हुआ। हिंदू और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बंटवारा ने करोड़ों लोगों को विस्थापित किया और लाखों की जान ली।
नोआखाली: गांधी जी का अहिंसा के लिए संघर्ष और विभाजन की दास्तान
कलकत्ता के दंगों की पृष्ठभूमि
10 अक्टूबर 1946 को नोआखाली में हिंसा की लहर दौड़ी, जहां 200 स्क्वायर मील के क्षेत्र में लूटपाट, आगजनी और हत्याओं की घटनाएं हुईं। इन दंगों में जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं भी सामने आईं, जिन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री सुरावर्दी ने स्वीकार किया, पर रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। इन दंगों से प्रभावित लोगों की भारी भीड़ कलकत्ता पहुंचने लगी, जहां हर दिन 1200 से ज्यादा शरणार्थी आ रहे थे।
महात्मा गांधी की नोआखाली यात्रा
महात्मा गांधी, इन घटनाओं से गहराई तक आहत हुए। 6 नवंबर 1946 को गांधी जी ने नोआखाली का दौरा शुरू किया। फरवरी 1947 तक वहां रहते हुए उन्होंने 47 गांवों में करीब 180 किलोमीटर पैदल यात्रा की। उनका उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम एकता को पुनर्जीवित करना था। गांधी जी ने हर गांव में हिंदू और मुस्लिम नेताओं को एकजुट करने का प्रयास किया, ताकि गांवों में शांति कायम की जा सके।
गांधी का मानना और उनकी रणनीति
गांधी जी का विश्वास था कि यदि लोग शांति और सौहार्द के साथ रहना शुरू करें, तो नेता भी उन्हीं के व्यवहार को प्रतिबिंबित करेंगे। उन्होंने कहा था, "लीडर वही करता है, जो लोग चाहते हैं।" उनके प्रयासों का परिणाम कुछ महीनों बाद दिखा, जब बंगाल में दंगों की घटनाएं समाप्त हो गईं।
दूसरे नेताओं के विचार
पंडित नेहरू का मानना था कि गांधी जी भारत के एक घाव से दूसरे घाव को ठीक करने में लगे हैं, जबकि समस्या का समाधान मूल कारणों को दूर करने में है। इस पर गांधी और नेहरू के विचारों में बड़ा मतभेद था।
विभाजन की ओर बढ़ते कदम
मार्च 1947 में पंजाब में मुस्लिम लीग ने गठबंधन सरकार को गिराकर विभाजन की योजना को तेज कर दिया। रावलपिंडी में हिंसा बढ़ने लगी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने लॉर्ड माउंटबैटन को भारत का अंतिम वायसराय नियुक्त किया। 22 मार्च 1947 को माउंटबैटन ने जिन्ना से बातचीत शुरू की, लेकिन जिन्ना ने यूनाइटेड इंडिया के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
गांधी का अंतिम प्रयास
गांधी जी ने देश को विभाजन से बचाने के लिए अंतिम प्रयास किया। उन्होंने जिन्ना को भारत का प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन नेहरू और सरदार पटेल ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। उनका मानना था कि जिन्ना के साथ काम करना असंभव है।
विभाजन का प्लान और उसका अमल
3 जून 1947 को नया पार्टीशन प्लान सभी नेताओं ने स्वीकार किया। 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन इसके साथ ही विभाजन का दर्द सामने आया। लाखों लोगों ने पलायन किया, हजारों मारे गए और महिलाओं पर अत्याचार हुए।
गांधी जी का सपना अधूरा
गांधी जी ने भारत को एकजुट रखने का हरसंभव प्रयास किया, लेकिन विभाजन को रोक नहीं सके। उनकी कोशिशें आज भी भारत के इतिहास में अहिंसा और शांति के प्रतीक के रूप में याद की जाती हैं।