मशरूम की खेती से बन सकते हो लखपति, कम समय कम कीमत में ज्यादा मुनाफा

किसान चरणदास साहू की मशरूम खेती की सफलता ने न सिर्फ उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया है, बल्कि उन्होंने अपने अनुभव से कई अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। 2002 में मशरूम की खेती शुरू करने वाले साहू ने कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लेकर इसकी शुरुआत की थी। वर्तमान में वे पैरा मशरूम, बटर मशरूम, आयस्टर मशरूम सहित विभिन्न किस्मों की खेती कर रहे हैं।
साहू ने बताया कि वे खुद बीज तैयार करते हैं और इसके साथ ही किसानों को मशरूम की खेती के बारे में जागरूक भी करते हैं। फिलहाल, वे आयस्टर मशरूम पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिसकी मार्केट में अच्छी मांग है।
छत्तीसगढ़ में मशरूम की खेती:
छत्तीसगढ़ की जलवायु मशरूम की खेती के लिए अनुकूल है। यहां मुख्य रूप से चार प्रकार के मशरूम होते हैं, जिनमें पैरा मशरूम और आयस्टर मशरूम प्रमुख हैं। इनकी खेती करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदमों को जानना जरूरी है:
पैरा मशरूम की खेती:
धान के पैरे का बंडल बनाना होता है।
शेड निर्माण की प्रक्रिया होती है, जो आमतौर पर 10 बाय 10 फीट या बड़े कमरे में किया जाता है।
आयस्टर मशरूम की खेती:
इसमें भी धान के पैरे का उपयोग किया जाता है।
ऑर्गेनिक विधि अपनाई जाती है, जिसमें 100 लीटर पानी में 400 ग्राम चूना का घोल बनाकर, लगभग 10 किलो पैरे को उपचारित किया जाता है।
मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया:
मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया में बीज डालने से पहले पैरे को 12 घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद इसे सुखाकर स्टोरेज में रखा जाता है। फिर, एच एम बैग के माध्यम से बीज डालकर इसे परतदार परत में तैयार किया जाता है। लगभग 22 से 25 दिन में मशरूम तैयार हो जाता है।
अच्छी कमाई और आत्मनिर्भरता:
चरणदास साहू की इस पहल से न सिर्फ उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है, बल्कि वे अन्य किसानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बने हैं। बनहरदी के एक अन्य किसान ने भी बताया कि मशरूम की खेती से वे सालाना लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं और सीजन के अनुसार विभिन्न प्रकार के मशरूम का उत्पादन करते हैं।
मशरूम की खेती छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प बन चुकी है, जिससे वे उन्नत खेती के माध्यम से अपनी आजीविका में सुधार ला सकते हैं और आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।