नीली क्रांति का नायक बना सिरसा,हर साल हो रहा है सैकड़ों टन मछली का निर्यात, 1300 एकड़ में हो रहा है मछली पालन

नीली क्रांति का नायक बना सिरसा,हर साल हो रहा है सैकड़ों टन मछली का निर्यात, 1300 एकड़ में हो रहा है मछली पालन
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सिरसा की मछली चीन, जापान, अमेरिका, वियतनाम और कोरिया जैसे देशों के लोगों को बेहद भा रही है। यही वजह है कि हर साल सैकड़ों टन झींगा मछली का निर्यात इन देशों में किया जा रहा है। सिरसा हरियाणा का सबसे बड़ा झींगा मछली उत्पादक जिला है और यहां पर प्रदेश के कुल झींगा मछली उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत उत्पादन होता है। अधिकांश मछली का निर्यात अमेरिका और चीन में होता है। दिल्ली और अन्य महानगरों के बड़े कारोबारी यहां से सीधा मछली उत्पादकों से मछली खरीदते हैं और उसके बाद प्रोसेसिंग यूनिट में मछली को प्रोसेस करने के बाद इसको चीन, अमेरिका, जापान, वियतनाम और कोरिया जैसे देशों में निर्यात किया जाता है। दिल्ली के अलावा बंगाल और आंध्र प्रदेश के कारोबारी भी सिरसा से मछली खरीदने आते हैं। सफेद झींगा जैसे गांवों में खारे पानी में पाला जाता है । सिरसा में पैदा होने वाली सफेद झींगा खरीदने के लिए तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के खरीदार आते हैं। यहां से मछली को चीन समेत विभिन्न देशों में निर्यात किया जाता है। इसके बीज और चारा आंध्र प्रदेश के मत्स्य व्यापारियों द्वारा लाए जाते हैं। विदेशों तक में मछली निर्यात होने के बाद किसानों को इसका अच्छा भाव मिलने लगा है और यही वजह है कि किसानों का रुझान झींगा मछली पालन की तरफ निरंतर बढ़ रहा है।
दरअसल अब मछली पालन के जरिए किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। सिरसा जिला के चोरमार, गुडियाखेड़ा, मिठड़ी, भगू, ओढां, दड़बा, आसाखेड़ा, चौटाला, मानक दीवान, कर्मशाना सहित कई गांव में किसान झींगा मछली पालन कर रहे हैं। एक हैक्टेयर में करीब 8 टन मछली उत्पादन होता है। करीब 32 से 35 लाख रुपए का उत्पादन होने के बाद किसानों की माली हालत सुधर रही है। खास बात ये है कि 110 से 120 दिनों में झींगा मछली का वजह 35 से 40 ग्राम हो जाता है और बाजार में इसकी कीमत करीब 370 से 415 रुपए रहती है। ऐसे में सामान्य फसलों और खेती की तुलना में मछली पालन में एक एकड़ में करीब 7 से 8 गुणा अधिक कमाई किसान कर रहे हैं। यही वजह है कि इस वित्तीय वर्ष में सिरसा में लक्ष्य से अधिक क्षेत्र में मछली पालन किसानों ने अपनाया है। अब इस कड़ी में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए सरकार ने दस हजार नए मछली फार्म अगले दो साल में बनाने हैं, जिससे लाखों युवाओं को रोजगार मिलेगा। वैसे देखें तो इस समय हरियाणा में करीब 17 हजार किसान मछली पालन से जुड़े हुए हैं। हरियाणा में 15 बीज फार्म के अलावा चार फिश मार्कीट हैं। 18,207 हैक्टेयर में मछली पालन हो रहा है और करीब 2 लाख 3 हजार टन उत्पादन हो रहा है।
दो वर्षों में बनेंगे 10 हजार नए फार्म
हरियाणा में अगले दो वर्षों में 10 हजार झींगा फार्म बनाए जाएंगे और इस कड़ी में सिरसा में भी आने वाले समय में मछली पालन के क्षेत्र को दोगुणा करने का लक्ष्य रखा गया है। इस समय प्रदेश में करीब 1800 एकड़ में मछली पालन किया जा रहा है। इसमें से अकेले सिरसा में 1300 एकड़ में मछली पालन हो रहा है। आंकड़ों के अनुसार साल 2014-15 में प्रदेश में 70 एकड़ में करीब 140 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ। 2021-22 में 1250 एकड़ में करीब 2900 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ।
ऐसे बढ़ता गया रुझान
मत्स्य पालन के गैर स्त्रोत में हरियाणा ने मछली पालन में लम्बे डग भरे हैं। सूबे के गठन के समय महज 58 हैक्टेयर में मछली पालन हो रहा था। अब यह 18 हजार हैक्टेयर को पार कर गया है। 1966 में जहां मात्र 600 टन मछली उत्पादन हुआ वहीं अब यह बढक़र 2 लाख टन से अधिक हो गया है। 2008-09 में ही 54 हजार 428 टन मछली उत्पादन हुआ, जबकि 2020-21 में 2 लाख 3 हजार टन उत्पादन हुआ था। इस समय 16 हजार से अधिक किसान मत्स्य उद्योग से जुड़े हुए हैं। खेतिहर के साथ मत्स्य पालन ने पंचायतों की तकदीर बदल दी। किसानों की पतली हो रही माली हालत को राहत पहुंचाने के लिए यह धंधा संजीवनी बनकर आया।
जोहड़ों में पाली जाती है अधिकांश मछली
प्रदेश में वैसे तो घग्घर व यमुना नदियां मछली उत्पादन का प्रमुख स्त्रोत हैं। लेकिन मत्स्य पालक अपनी भूमि पर तालाब आदि बनाकर मछली का उत्पादन करते हैं। इस समय किसानों के दो हजार जोहड़ हैं। वहीं पंचायतों के अधीन आने वाले करीब 7 हजार से अधिक जोहड़ों में मछली पालन होता है। पंचायती जोहड़ मछली पालन के लिए ठेके पर दिए जाते हैं। इससे पंचायतों की आमदनी होती है। इसके अलावा दो प्रमुख नदियों व कैनाल के प्रकृतिक पानी में करीब 55 प्रकार की मछलियोंं की किस्म पाई जाती हैं। अगर नजर डालें तो प्रदेश में मछली उत्पादन में करीब 10 हजार हैक्टेयर पर तालाब हैं। इसके अलावा 3600 किलोमीटर में विभिन्न डे्रन, 13,800 किलोमीटर क्षेत्र में कैनाल, 5 हजार किलोमीटर में नदियां मछली उत्पादन के प्रमुख स्त्रोत हैं।