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IINDIA BOOK OF RICORD - सिरसा के गोदिंका गा़व के किसान का नाम दर्ज हुआ इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड मे


IINDIA BOOK OF RECORD - The name of the farmer of Godinka village of Sirsa was registered in the India Book of Records
सिरसा के गोदिंका गा़व के किसान का नाम दर्ज हुआ इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड मे

यह कहानी है एक पढे-लिखे किसान की। जिसके पास जमीन है। यहां फसल लहलहाती है। उससे जो आमदनी होती है, उससे घर चलता है। कहानी यहीं तक सीमित नहीं। अंग्रेजी में एमए पास यह किसान देश का भविष्य सींच रहा है। पिछले करीब 27 साल से सरकारी स्कूल में निश्शुल्क पढ़ा रहा है। पता हैं क्यों, क्योंकि पढ़ लिखकर सरकारी अध्यापक बनने का जुनून था। नौकरी नहीं मिली तो जिंदगी भर निश्शुल्क पढ़ाने की ठान ली थी। हम बात कर रहे हैं करीब 59 वर्षीय जीवन दास तनेजा की। जोकि गांव गोदिकां के रहने वाले हैं। गांव के गौरव पट्ट पर उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। इंडिया बुक आफ रिकार्ड में नाम दर्ज होने के बाद देशभर में चर्चा में आ गए हैं।


यहां पढ़ा चुके हैं तनेजा
जीवन दास तनेजा मई 2017 से राजकीय प्राथमिक पाठशाला गोदिकां में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इससे पूर्व 10 वर्ष तक गोरीवाला, करीब छह माह गांव कालुआना, कई वर्ष गांव अहमदपुर दारेवाला के सरकारी स्कूल में सेवाएं दे चुके हैं। जिंदगी के करीब तीन दशक निश्शुल्क शिक्षा को समर्पित करने वाले जीवन दास तनेजा को प्रशासन सम्मानित कर चुका है।


किसान हूं, ख्वाहिशें कम करके परिवार पाला
तनेजा के परिवार की बात करें तो घर पर उनकी पत्नी बिमला तनेजा है। तीन बेटियां, एक बेटा है। एमएड कर चुकी दो बेटियों की शादी हो चुकी है। एक बेटा तथा एक बेटी बीएड के बााद जेसीडी सिरसा से एमएड कर रहे हैं। तनेजा के मुताबिक वह किसान है। फसल की आमदनी के साथ-साथ ख्वाहिशें कम की तो बच्चों को पढ़ा पाया, साथ ही परिवार पाल सका।


निजी स्कूलों के आफर ठुकरा दिए
इंडिया बुक आफ रिकार्ड में नाम दर्ज करवाने वाले जीवन दास ने बताया कि सरकारी नौकरी की आस टूट गई तो निजी स्कूलों से आफर मिले। लेकिन उन्होंने सरकारी स्कूल के बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाना उचित समझा।


ग्राम पंचायतें और स्कूल मुखिया खुद करवाते हैं सेवा
वर्ष 1996 की बात है गोरीवाला के मिडिल स्कूल में महज एक महिला अध्यापिका थी। उस दौरान जीवन दास बच्चों को टयूशन पढ़ाते थे। महिला अध्यापिका को जब उनका पता चला तो उन्होंने सरकारी स्कूल के बच्चों को पढ़ाने का अनुरोध किया। सहर्ष निवेदन स्वीकार कर लिया। फिर क्या था, यहां कहीं अध्यापक की कमी होती तो संबंधित ग्राम की पंचायत उन्हें अपने स्कूल में लेजाती थी। पंचायतें लिखित में देती थी कि जीवन दास निश्शुल्क बच्चों को पढ़ा रहे हैं। नियमित अध्यापक की तरह यह किसान समय पर स्कूल पहुंचता, छुट्टी के बाद वापिस घर लौटता था। अब भी यही दिनचर्या है। गांव गोदिकां में

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