जब शताब्दी पुराने घंटाघर को तुड़वा डाला पूर्व सीएम चौ. बंसीलाल ने
हरियाणा के सिरसा शहर का तुलसी चौक, जो आज अपने नाम के कारण प्रसिद्ध है, कभी अपने घंटाघर के लिए जाना जाता था। यह घंटाघर शहर की शान हुआ करता था और उसकी 100 फुट ऊंची संरचना हर किसी का ध्यान खींचती थी। यह घंटाघर न सिर्फ नगर के केंद्र में था, बल्कि उसकी धमाकेदार घंटी की आवाज दूर-दूर तक सुनाई देती थी, जिससे शहर और आसपास के गांव के लोगों को समय का आभास होता था।
घंटाघर की स्थापना की कहानी
सिरसा का यह घंटाघर करीब 100 साल पहले, जब शहर में घड़ियां घर-घर नहीं थीं, एक समाजसेवी रामलाल करणानी ने अंग्रेजों के शासनकाल में स्थापित करवाया था। तब अंग्रेज अधिकारी समय के पाबंद थे, लेकिन यहां के स्थानीय लोग समय की कद्र नहीं करते थे। इस पर, रामलाल करणानी ने नगरवासियों को समय बताने के लिए घंटाघर बनाने की सिफारिश की थी। इस सुझाव के बाद ही, चांदनी चौक के पास बड़े घंटाघर का निर्माण कराया गया था।
इस घंटाघर के निर्माण का मुख्य उद्देश्य यह था कि नगर और आसपास के गांवों के लोग, जिनके पास अपनी घड़ी नहीं थी, उन्हें समय की जानकारी हो सके। घंटे की आवाज मीलों दूर तक जाती थी, और हर घंटे, हर पहर की जानकारी देता था। उस समय, शहर के प्रत्येक चौक पर कुंआ भी होता था, जिससे पानी की किल्लत से बचा जा सकता था।
पूर्व सीएम बंसीलाल की कार्रवाई
शताब्दी पुराने इस घंटाघर का नाम तुलसी चौक में तब्दील किया गया जब पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल ने 1980 के दशक में प्रदेश के विभिन्न शहरों और चौराहों पर बने घंटाघरों को तुड़वाने की मुहिम शुरू की थी। इसी मुहिम के तहत सिरसा का यह प्रसिद्ध घंटाघर भी ढहा दिया गया।
इतिहासकारों के अनुसार, यह घंटाघर न केवल आकार में विशाल था, बल्कि इसकी ध्वनि भी इतनी जोरदार थी कि उसकी आवाज रामनगरिया गांव तक पहुंचती थी। यह घंटाघर सिरसा की एक पहचान बन चुका था, लेकिन बंसीलाल की योजना ने इसे खत्म कर दिया।
इतिहास और संस्कृति का ह्रास
यह घटना सिरसा के इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर के लिए एक दुखद क्षण था। घंटाघर का गिरना केवल एक इमारत के ढहने जैसा नहीं था, बल्कि यह उस समय की समाजिक पहचान और लोकप्रियता के प्रतीक का ह्रास था। उस समय के लोगों के लिए यह घंटाघर न केवल समय बताने का माध्यम था, बल्कि स्थानीय जीवन का हिस्सा भी था।
आज तुलसी चौक के नाम से पहचाने जाने वाले स्थान पर, जहां कभी घंटाघर खड़ा था, अब उस ऐतिहासिक धरोहर का कोई निशान नहीं बचा है।