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आखिर क्यों मशहूर थी सिरसा की ये हवेलियां

आखिर क्यों मशहूर थी सिरसा की ये हवेलियां

सरसाई नाथ की इस नगरी में एक वक्त ऐसा भी था जब इस नगरी में भव्य एवं अद्भुत हवेलियों की भरमार थी। आज बदलते हुए सिरसा में इनके अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। गौरतलब है कि दशकों पहले नगर में सौ से अधिक भव्य हवेलियां हुआ करती थी। शहर में उस समय आठ मुख्य बाजार थे और करीब हर बाजार में इस प्रकार की भव्य हवेली देखने को मिल जाती थी। खास प्रकार से बनी ये हवेलियां नगर की शान मानी जाती थी। वहीं बदलते समय के साथ ये सभी हवेलियां लगभग अपना वजूद खो रही हैं।

आज नगर में इस प्रकार की आधा दर्जन से भी कम हवेलियां बची हैं। ये हवेलियां आज शहर की सबसे पुरानी इमारत के होने का सबूत भी हैं और उस जमाने की कला और रहने के शाही अंदाज का प्र्रतीक भी। वर्ष १८३८ में जयपुर के तत्कालीन अधीक्षक मेजर थोरस्वी ने आधुनिक सिरसा नगर  को बसाया था। जयपुर के नक्शे पर सिरसा शहर को बसाया गया था। उस समय नगर में भादरा बाजार, रोड़ी बाजार, रानियां बाजार, नोहरिया बाजार, हिसारिया बाजार, सूरतगढिय़ा बाजार व सदर बाजार मुख्य हुआ करते थे और नगर में उस समय चार चौराहे थे।

खास एक इलाके से आने वाले लोगों के एक क्षेत्र में बसने पर ही बाजारों का नाम रखा गया। जैसे जो परिवार नोहर से आकर सिरसा के एक हिस्से में बसे उस हिस्से का नाम नोहरिया बाजार रखा दिया गया। जिस समय सिरसा बसा जयपुर की तरह नगर में उस समय कोई भी गली बंद नहीं थी। गलियां बहुत खुली थीं। समय के साथ आज नगर में कुछ बंद गलियां भी बन गई हैं और अनेक वजहों से सुंदर शहर का स्वरूप भी आज बिगड़ता जा रहा है। नगर में खुली गलियों के अलावा एक और जो खास बात थी, वह थी नगर की हवेलियां। हर बाजार में बहुत सी बड़ी हवेलियां थी और हर चौराहे पर एक बड़ी बावड़ी बनाई गई थी।

इन बावडिय़ों से नगर के लोग पानी भरा करते थे। खजांचियों की हवेली, सेठ गनेरीवाला हवेली, नेवरों की हवेली, सेठ रामलाल करणानी की हवेली शहर में मशहूर थी। आज भी नगर के चांदनी चौक बाजार में सेठ गनेरीवाला हवेली है जो शहर की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। हवेलियों में खास प्रकार की नक्शा-नक्काशी होती थी और भूतल से इनकी ऊंचाई भी काफी अधिक होती थी।

खास बात है कि हवेली में लकड़ी का एक बहुत बड़ा दरवाजा होता था और ऊपर बिल्कुल मध्य में एक घंटा लगा होता था, जिससे हर पहर समय का आभास होता था। मजबूत स्तंभों पर टिकी ऐसी हवेलियों में एक बड़ा हालनुमा कमरा व घूमने के लिए बाड़ी होती थी। अन्य कमरे भी साधारण की अपेक्षा काफी बड़े होते थे साथ ही साथ इन कमरों की बनावट इस प्रकार की थी कि इनमें रहने वाले किसी को भी गर्मी का आभास नहीं होता था।  अब बदलते सिरसा की हालत यह है कि मौजूदा समय में हवेलियां भी जर्जर हालत में हैं। यह जरुर है कि शेष बची ये हवेलियां आज शहर की सबसे पुरानी इमारतों के होने एवं उस जमाने के जीने के शाही अंदाज की गवाह हैं।

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