लाशें उगल रहीं नहरें, हत्या या हादसा

लाशें उगल रहीं नहरें, हत्या या हादसा
खेतों को सिंचित करने के लिए बनाई गई नहरें ‘शवगाह’ बनी हुई हैं। नहरों में शवों के मिलने का सिलसिला थम नहीं रहा है। खास बात है कि नहरों में मिलने वाले अधिकांश शवों की तो शिनाख्त ही नहीं हो पाती है। ऐसे में ऐसे शवों को अपनों के चार कंधे भी नसीब नहीं होते। तथ्य यह भी है कि सूबे में नहरों एव माइनरों में सबसे अधिक शव सिरसा जिला में ही मिल रहे हैं। बहुत से मामलों में तो हत्या की साजिश का भी अंदेशा रहता है।
दरअसल प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे सिरसा जिला में सबसे अधिक माइनर व नहरों की संख्या है। जिला में छोटी-बड़ी 100 से अधिक नहरें व माइनर हैं। इस गौरवपूर्ण पहलू का चिंताजनक बात यह है कि नहरों-माइनरों में शवों के मिलने की संख्या भी सूबे में सबसे अधिक है। जिला में नहरें व माइनर एक प्रकार से शवगाह बनी हुई हैं। वर्ष 2009 में विभिन्न माइनरों व नहरों से पुलिस को पांच दर्जन से अधिक शव मिले। चिंताप्रद बात यह है कि बहुतेरी बार पुलिस को ऐसे शव मिलते हैं जिनके शरीर पर चोट के निशान होते हैं। चेहरा भी पहचाना नहीं जाता है और ऐसे में शव की शिनाख्त भी नहीं हो पाई।
ऐसे में ऐसे शवों की मौत का रहस्य से भी पर्दा नहीं उठ पाता है। मौत का राज, राज ही रह जाता है। ऐसे शवों के मामले में पुलिस की ओर से पहले पहल शव की पहचान करने की कोशिश उसके हुलिए के जरिए की जाती है। इसके बाद आसपास के लोगों से पूछताछ की जाती है। शव को 72 घंटे पोस्टमार्टम कक्ष में रहता है और फिर भी पहचान न होने पर शव का पोस्टमार्टम कर दिया जाता है। ऐसे में मौत का राज, राज ही रह जाता है और ऐसे शवों को चार कंधे भी नसीब नहीं होते। पुलिस भी मानती है कि नहरों एवं माइनरों में शवों के मिलने का सिलसिला थम नहीं रहा है। हर दूसरे-तीसरे दिन किसी न किसी नहर या माइनर में कोई शव मिलता है।