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दूधवालों और चायवालों की आपात बैठक: हिसाब चुकता न करने वाले नेता पर कड़ा कदम

दूधवालों और चायवालों
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आपात बैठक

दूधवालों और चायवालों की आपात बैठक: हिसाब चुकता न करने वाले नेता पर कड़ा कदम

दुकानदारों की आपात बैठक

दिल्ली में दूधवाले, चायवाले, पानवाले, कुलचेवाले, पानपूरी वाले, सफाईकर्मी, टेंट वाले और चिंगम बेचने वाले दुकानदारों ने एक आपात बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में उन नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया, जिन्होंने चुनाव के दौरान इन दुकानदारों से उधारी ली लेकिन अब तक उसका भुगतान नहीं किया।

दीवारों पर चस्पा होगी उधारी सूची

बैठक में यह तय किया गया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान नेताओं द्वारा ली गई उधारी की सूची शहर की दीवारों पर चस्पा की जाएगी। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि कई बार डेडलाइन देने के बावजूद नेताओं ने हिसाब चुकता नहीं किया।

सभी दलों को भेजी जाएगी शिकायत

दुकानदारों ने कहा कि वे इन नेताओं की उधारी का पूरा विवरण तमाम राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं और हाई कमान को भेजेंगे। एक विशेष पत्र लिखा जाएगा, जिसमें इन नेताओं को राजनीति से दूर रखने की भावनात्मक अपील की जाएगी।

राजनीतिक हस्तक्षेप की मांग

बैठक में यह भी निर्णय हुआ कि शिकायत पत्र को छाल के पत्ते पर लिखा जाएगा, जो भारतीय परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है। इसके माध्यम से राजनीतिक दलों को यह संदेश दिया जाएगा कि ऐसे नेताओं को राजनीति से दूर रखा जाए, जो अपने वादों को निभाने में असफल रहते हैं।

उधारी की वजह से बढ़ी परेशानी

कलायत विधानसभा चुनाव के दौरान एक नेता ने दुकानदारों से उधारी ली थी। यह नेता खुद को एक पूर्व मुख्यमंत्री का खास सहयोगी बताते हैं। लेकिन लंबे समय से दुकानदार इनके पीछे-पीछे घूम रहे हैं। अब दुकानदारों ने साफ कर दिया है कि हिसाब चुकता किए बिना वे चुप नहीं बैठेंगे।

नेताओं के खिलाफ बढ़ रहा गुस्सा

दुकानदारों का कहना है कि उनके सब्र का बांध टूट चुका है। अब वे सार्वजनिक रूप से इन नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे। चुनावों के दौरान मदद के लिए आगे आने वाले इन नेताओं का असली चेहरा जनता को दिखाया जाएगा।

निष्कर्ष
यह घटना राजनीति और स्थानीय व्यापारियों के बीच बिगड़ते संबंधों की एक बड़ी मिसाल है। चुनाव के समय नेताओं का दुकानदारों से वादे करना और बाद में उन्हें भूल जाना, उनके प्रति लोगों का विश्वास घटा रहा है। अब यह देखना होगा कि दुकानदारों के इस कदम का राजनीतिक दलों और जनता पर क्या असर पड़ता है।

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