विश्व के बड़े भाग पर आज भी अंग्रेजी भाषी लोग कर रहे शासन: ठाकुर दलीप सिंह

विश्व के बड़े भाग पर आज भी अंग्रेजी भाषी लोग कर रहे शासन: ठाकुर दलीप सिंह
सिरसा। आज भी विश्व के सब से बड़े भाग (जैसे आस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका आदि) को गुलाम बना कर, उस पर इंग्लैंड के अंग्रेजी-भाषी लोग ही शासन कर रहे हैं।
ठाकुर दलीप सिंह ने कहा कि इसका कारण केवल वही है, जिस का मैं यहां उल्लेख कर रहा हूं। इंग्लैंड का विश्व के लोगों को गुलाम बना कर, वहां अपना साम्राज्य स्थापित करना।
इंग्लैंड का विश्व पर साम्राज्य स्थापित होने के कारण, उन की भाषा व संस्कृतिय विश्व भर में प्रचलित हो कर, सर्वमान्य हो गई है और लोगों ने भी अवचेतन मन से ही, अपनी मातृभाषा व संस्कृति छोड़ कर उन की भाषा व संस्कृति को धारण कर लिया है। यहां तक कि फ्रांस, स्पेन आदि ने जिन देशों पर शासन किया था, भले ही वहां फ्रांसी, सपेनी भाषाएं, अधिकारित रूप से चलती हैं।
परंतु, उन देशों का भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी के बिना राजनीतिक संबंध, व्यापार आदि संभव नहीं। आश्चर्य की बात है कि रूस, फ्रांस, जर्मनी, चीन, जापान आदि जो देश इंग्लैंड के गुलाम नहीं भी हुए तथा जिन की अपनी भाषाएं बहुत समृद्ध हैं, उन्हें भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार तथा राजनीतिक संबंध स्थापित करने के लिए अंग्रेजी का उपयोग करना ही पड़ता है।
भले ही कई वर्षों से इंग्लैंड का साम्राज्य बहुत देशों पर नहीं रहा, फिर भी वहां पर उन्हीं की भाषा अंग्रेजी का उपयोग हो रहा है। जहां पर गुलाम बनाने वाले इंग्लैंड, फ्रांस आदि देशों की भाषा का प्रत्यक्ष रूप से उपयोग नहीं होता, परंतु वहां पर भी उन गुलाम रहे देशों ने अपनी भाषा को, यूरोपियन देशों की लातीनी लिपि में लिखना शुरू कर दिया है।
इस प्रकार से लिपि के रूप में इन अनैतिकए अधर्मी देशों की भाषाय वहां पर सदा के लिए स्थापित हो गई है। भाषा एवं संस्कृति आपस में ओतपोत हैं। इस कारण भाषा एवं संस्कृति को पूरी तरह से पृथक नहीं किया जा सकता।
जिस देश में विदेशी भाषा या लिपि का उपयोग किया जाएगा, उस भाषा/लिपि के उपयोग कारण, विदेशी संस्कृति भी प्रफुल्लित हो कर वहां के मूल निवासियों में प्रचलित हो जाएगी। संभव है कि गुलाम रह चुके देशों की लिपि, इन अधर्मी यूरोपीय देशों की लिपि जैसी विकसित न हुई हो।
यदि ऐसा भी था, तो उन देशों को इन पापी यूरोपीय देशों की लिपि अपनाने की बजाए, अपनी नई लिपि बना लेनी चाहिए थी। क्योंकि, इन यूरोपीय देशों की लिपि अपनाने के कारण, उन देशों की अपनी लिपि के जो अक्षर थे, वह सदा के लिए लुप्त हो गए हैं, या हो जाएंगे। अन्य देशों पर अपना साम्राज्य स्थापित कर के, उन्हें गुलाम बनाने वाले इन अधर्मी, पापी देशों की लिपि: सदा के लिए उन गुलाम रह चुके देशों की संस्कृति का अभिन्न अंग बन गई है। जैसे मलेशिया की अपनी लिपि पलावा थी।
इंग्लैंड के शासन कारण मलेशिया की अपनी पलावा लिपि लुप्त हो कर वहां अंग्रेजी लिपि (लातीनी रूपांतरण में) प्रचलित हो गई है। मलई भाषा आजकल अंग्रेजी लिपि में लिखी जाने लगी है।
इसी तरह, वियतनाम में फ्रांसीसी शासन के कारण, उन की अपनी वियतनामी भाषा की बजाय, अधिकारित रूप से फ्रेंच (लातीनी रूपांतरण) में लिखी जाने लगी है।
ठाकुर दलीप सिंह ने कहा कि केवल अंग्रेजी ही नहीं, जहां पर अरबी भाषा वालों ने अपना साम्राज्य स्थापित किया है, वहां पर उन का शासन हटने के उपरांत भी उन की लिपि व भाषा, किसी न किसी रूप में उन देशों में प्रचलित हो गई है। भारत में भी अरबी देशों के प्रभाव कारणए अरबी लिपि आधारित एक नई उर्दू भाषा बन कर स्थापित हो गई है।
आम जनता को तो विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग करते हुए पता ही नहीं चलता। उदाहरण स्वरूप अरबी भाषा के शब्द औलाद, अक्ल, खबर, अमीर, गरीब, मालिक, औरत, मुहब्बत आदि भारत में इस तरह प्रचलित हो चुके हैं कि भारतवासियों को पता ही नहीं चलता कि यह विदेशी अरबी भाषा के शब्द हैं, भारतीय भाषा के नहीं।
इसी तरह सौरी, थैंक यू, प्लीज, सर, मैडम, रोड आदि शब्द, विदेशी अंग्रेजी भाषा के होते हुए भीय भारतीय लोगों की बोलचाल का अभिन्न अंग बन गए हैं। इस के विपरीत, उपरोक्त प्रचलित विदेशी शब्दों के समानांतर, भारतीय भाषाओं के शब्द तो आम जनता भूल चुकी है। जैसे:- संतान, बुद्धि, समाचार, धनी, निर्धन, स्वामी, नारी, प्रेम, क्षमा, धन्यवाद, कृपया, श्रीमान, श्रीमती, मार्ग आदि। भारतीय भाषा के शब्दों का उपयोग: इंग्लैंड, अमेरिका आदि यूरोपियन देशों में प्रचलित नहीं हुआ। क्योंकि, नैतिक व धर्मी होने के कारण, भारत ने उन देशों को गुलाम बना कर, वहां अपना साम्राज्य स्थापित नहीं किया।
जिस कारण भारतीय भाषाएं तो भारत में ही लुप्त हो कर समाप्त होती जा रही हैं। जब कि अनैतिक, अधर्मी (दूसरों को गुलाम बनाने वाले) इंग्लैंड की भाषा अंग्रेजी पूरे विश्व में प्रफुल्लित हो रही है और बहुत सारे देशों में अधिकारित रूप से अपनाई भी जा चुकी है। जैसे:- स्वतंत्र होने के 77 वर्ष उपरांत भी भारत सरकार के सभी कार्य अंग्रेजी में ही होते हैं।
इसी तरह, विश्व के 195 देशों में से 55 देशों में, स्वतंत्र होते हुए भी, अधिकारित रूप से सभी सरकारी कार्य अंग्रेजी में ही होते हैं, जब कि 100 से अधिक देशों में तो अन-अधिकारिक रूप से भी अंग्रेजी का उपयोग हो रहा है। उपरोक्त सार से यह पूर्णत: प्रत्यक्ष होता है कि यदि भारत ने विश्व पर इंग्लैंड की तरह साम्राज्य स्थापित किया होता तो सभी देशों में सभी सरकारी कार्य, अधिकारित रूप से, भारतीय भाषा में ही किए जाते।