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मकर संक्राति क्यों मनाते हैं और क्या है इसका महत्व? जानें

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
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मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है। इसे उत्तरायण की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है, जो देवताओं के दिन का प्रारंभ माना जाता है। इस दिन से छह महीने का उत्तरायण काल प्रारंभ होता है, जो शुभ कार्यों और आध्यात्मिक साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।

महाभारत काल में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन अपनी इच्छा मृत्यु का वरदान उपयोग कर शरीर का त्याग किया। यह योगियों और साधकों के लिए एक विशेष समय है, जब आत्मा का परमात्मा से मिलन आसान होता है।

ज्योतिषीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

ज्योतिषीय गणना के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। हिंदू परंपरा में इसे निरयन प्रणाली के अनुसार 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर बढ़ता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह समय पृथ्वी और सूर्य की स्थिति में बदलाव को दर्शाता है। इस दिन से दिन लंबे होने लगते हैं, और यह समय कृषि और मौसम के परिवर्तन के लिए भी महत्वपूर्ण है।

मकर संक्रांति के त्योहार और परंपराएं

  1. खिचड़ी का महत्व: मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने और दान करने की परंपरा है। यह भोजन सादगी और पोषण का प्रतीक है।
  2. पतंगबाजी: उत्तर भारत में इस दिन पतंग उड़ाने का विशेष प्रचलन है, जो उत्साह और आनंद का प्रतीक है।
  3. गंगा स्नान और दान: प्रयागराज और हरिद्वार जैसे स्थानों पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान से पापों का नाश होता है।

पौराणिक और धार्मिक संदर्भ

रामचरित मानस और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मकर संक्रांति का उल्लेख मिलता है। इस दिन को भगवान सूर्य की उपासना और गायत्री मंत्र जाप के लिए विशेष माना गया है। यह पर्व देवताओं और ऋषि-मुनियों द्वारा वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से महिमामंडित किया गया है।

निष्कर्ष

मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना, ज्योतिषीय ज्ञान और वैज्ञानिक मान्यता का प्रतीक है। इस दिन का महत्व धार्मिक ग्रंथों से लेकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण तक व्याप्त है।

इस शुभ पर्व पर हमें भगवान सूर्य की उपासना करनी चाहिए और अपनी साधना में तत्पर रहना चाहिए। यह दिन आध्यात्मिक उन्नति और समाज कल्याण के लिए समर्पित है।

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