पाकिस्तान के मुल्तान में सर गंगाराम के बेटे को हरानी वाली हरियाणा की इस महिला की कहानी जानकर आप चौंक जाएंगे

देश की राजनीति में अनेक ऐसे किरदार हुए हैं, जिन्होंने अपनी कौशलता के बल पर बड़े मुकाम भी हासिल किए और एक खास पहचान भी बनाई। इन किरदारों में से एक महत्वपूर्ण नाम है शन्नो देवी। शन्नो देवी आजादी से पहले पाकिस्तान के मुल्तान से विधायक चुनी गई। देश के विभाजन के बाद संयुक्त पंजाब के वक्त वे पंजाब के अमृतसर से भी विधायक बनीं। पंजाब विधानसभा में डिप्टी स्पीकर के रूप में भी काम किया। पंजाब के विभाजन के बाद हरियाणा अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया तो शन्नो देवी हरियाणा के जगाधरी से विधायक बनीं।
1 नवंबर 1966 को हरियाणा गठन के बाद वे उन्हें हरियाणा विधानसभा का पहला अध्यक्ष बनने का गौरव हासिल हुआ। खास पहलू यह है कि उनके बाद फिर हरियाणा में कोई महिला इस पद तक नहीं पहुंची।
गौरतलब है कि आजादी से पहले और उसके बाद राजनीति के बड़े चेहरों के बीच शन्नो देवी ने राजनीति में खास मुकाम बनाया जब सियासत में महिलाओं की भागीदारी न के बराबर थी। आजादी से पहले वे अविभाजित हिंदुस्तान के मुल्तान (अब पाकिस्तान में) से पहली बार 1940 में विधायक बनी थीं। उस चुनाव में शन्नो देवी ने मुल्तान विधानसभा सीट से जाने-माने सिविल इंजीनियर सर गंगाराम के बेटे को पराजित किया था। 1946 में वे दूसरी बार मुल्तान से विधायक निर्वाचित हुई।
विधायक के रूप में मुल्तान में छोड़ी थी छाप
शन्नो देवी का जन्म 2 जून 1902 को पंजाब के जालंधर में हुआ। जालंधर के स्नातक कन्या महाविद्यालय से उन्होंने अपनी पढ़ाई की। अंग्रेजी हुकूमत के समय साल 1940 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने मुल्तान सीट से सर गंगाराम के बेटे को करीब 6 हजार वोटों के अंतर से पराजित किया और वे पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। 1946 में वे फिर से मुल्तान से विधायक चुनी गईं। एक विधायक के तौर पर मुल्तान में उनकी ओर से उस जमाने में शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए किए गए कार्यों को याद किया जाता है।
आजादी के बाद उनका परिवार भारत के पंजाब प्रांत में आकर बस गया। इसके बाद भी शन्नो देवी का सियासी सफर जारी रहा। उन्होंने पंजाब के अमृतसर को अपनी सियासी गतिविधियों का केंद्र बिंदू बनाया और साल 1951 में हुए पहले आम चुनाव में अमृतसर सिटी वेस्ट से विधानसभा चुनाव लड़ा। कांग्रेस से चुनाव लड़ते हुए शन्नो देवी ने 12,496 वोट प्राप्त करते हुए भारतीय जनसंघ के प्रकाश चंद को 8420 वोटों के अंतर से पराजित किया। प्रकाश चंद को 4,076 वोट मिले। 1957 में शन्नो देवी ने रोहतक विधानसभा सीट को चुना। कांग्रेस से चुनाव लड़ते हुए शन्नो देवी 8,829 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। उस चुनाव में भारतीय जनसंघ के मंगल सैन विधायक निर्वाचित हुए थे। 1962 में शन्नो देवी ने फिर से अपना निर्वाचन क्षेत्र बदला और इस बार उन्होंने इस बार जगाधरी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और 17,791 वोट लेते हुए जनसंघ के इंद्र सैन को 4,990 वोटों के अंतर से पराजित किया।
जालंधर में चार साल तक कन्या महाविद्यालय में रही थीं प्राचार्या
रोचक पहलू यह है कि राजनीति में आने से पहले शन्नो देवी ने जालंधर के स्नातक कन्या महाविद्यालय में प्राचार्या के रूप में काम किया जबकि 1936 से 1940 तक हिंदी समाचार पत्र शक्ति की संपादक भी रहीं। शन्नो देवी पहली ऐसी महिला नेत्री रहीं जो किसी भी राज्य की विधानसभा स्पीकर के पद तक पहुंची। 1 नवम्बर 1966 को हरियाणा का गठन हुआ और शन्नो देवी 1 नवम्बर 1966 से लेकर 5 दिसम्बर 1966 तक हरियाणा विधनसभा की डिप्टी स्पीकर रहीं और इसके बाद 6 दिसम्बर 1966 से लेकर 17 मार्च 1967 तक हरियाणा विधानसभा की अध्यक्ष रहीं। विशेष तथ्य यह है कि उसके बाद कोई भी महिला हरियाणा विधानसभा की स्पीकर नहीं बन सकीं। शन्नो देवी के पिता सेत राम खन्ना एक सरकारी मुलाजिम थे।
हरियाणा विधानसभा का स्पीकर रहने से पहले 20 मार्च 1951 से लेकर 26 मार्च 1951 और बाद में 19 मार्च 1962 से लेकर 31 अक्तूबर 1966 तक वे पंजाब विधानसभा की डिप्टी स्पीकर भी रहीं। इस तरह से शन्नो देवी पूरे देश में इकलौती ऐसी महिला लीडर रही जिन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान पाकिस्तान के मुल्तान से चुनाव जीता। इसके अलावा स्वतंत्रता आंदोलन में भी शन्नो देवी की अहम भूमिका रही। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोहा लेने वाली सुशीला देवी जो पूरे देश में एक महिला क्रांतिकारी के रूप में सुशीला दीदी के नाम से प्रसिद्ध थी वे शन्नो देवी की ही विद्यार्थी थीं। शन्नो देवी आर्य कन्या महाविद्यालय जालंधर की ङ्क्षप्रसीपल थीं और सुशीला दीदी वहां पढ़ा करती थी। शन्नो देवी की कार्यशैली और राष्ट्रभक्ति के चलते उन दिनों जालंधर का कन्या महाविद्यालय स्वंतत्रता आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र रहा।