चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में अब जल्द होगा बड़ा बदलाव!
हरियाणा के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस में सियासी हलचल लगातार तेज होती नजर आ रही है। इस कड़ी में हरियाणा कांग्रेस मामलों के प्रभारी दीपक बाबरिया ने सोमवार को विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश शीर्ष नेतृत्व को कर दी है तो साथ ही उन्होंने अपनी खराब तबीयत का भी हवाला देते हुए इस पद पर बने रहने में असमर्थता व्यक्त की है। ऐसा माना जा रहा है कि जल्द ही नए प्रभारी की नियुक्ति की जा सकती है। यही नहीं चुनाव परिणाम के बाद मंथन में जुटी कांग्रेस द्वारा प्रभारी के अलावा हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बदला जा सकता है तो इस बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जगह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी किसी नए चेहरे को बनाया जा सकता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पार्टी शीर्ष नेतृत्व अब इन तीनों ही अहम पदों पर सक्रिय व नए चेहरों को नियुक्त कर सकता है।
उल्लेखनीय है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम में भाजपा को 48 सीटों पर जीत मिली है तो 3 आजाद विधायक भी उसके साथ हैं। कांग्रेस को 39.09 प्रतिशत वोट के साथ 37 सीटों पर जीत मिली है। तमाम सर्वे इस बार कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलता दिखा रहे थे, लेकिन सभी आंकलन गलत साबित हुए। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व ने ई.वी.एम. में गड़बड़ी के संदर्भ में चुनाव आयोग को शिकायत भी दी है, मगर इस शिकायत को लेकर चुनाव आयोग जांच कर रहा है। इस विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस को उम्मीद से कहीं कम सीटें हासिल हुई हैं, उसे देखते हुए पार्टी शीर्ष नेतृत्व इसके पीछे प्रांतीय नेताओं की आपसी गुटबाजी के साथ-साथ एक वर्ग विशेष को महत्व दिए जाने को भी बड़ा कारण मान रहा है और ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व इन सबके बीच बड़े बदलाव की तैयारी में है।
नेता प्रतिपक्ष के रूप में हुड्डा की जगह चंद्रमोहन, अरोड़ा व भुक्कल का नाम है चर्चा में
गौरतलब है कि 2014 से लेकर 2019 तक इनैलो विपक्ष में रही और अभय चौटाला नेता प्रतिपक्ष थे। 2019 से लेकर 2024 तक कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल रही और पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा नेता प्रतिपक्ष थे। इस बार कांग्रेस 37 विधायकों के साथ प्रमुख विपक्षी दल है। ऐसे में सियासी पंडित मानते हैं कि इस बार हुड्डा की जगह किसी अन्य विधायक को नेता प्रतिपक्ष बनाया जा सकता है। इस पद को लेकर पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन बिश्रोई, विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष अशोक अरोड़ा व पूर्व मंत्री गीता भुक्कल का नाम सबसे अधिक चर्चा में है। चंद्रमोहन पंचकूला से विधायक चुने गए हैं। खास बात यह है कि चंद्रमोहन ने विधानसभा के पूर्व स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता को पराजित किया है। वैसे भी चंद्रमोहन चार बार कालका से विधायक रहने के अलावा 2005 से लेकर 2008 तक उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। इसी तरह से अशोक अरोड़ा थानेसर से विधायक चुने गए हैं और वे इनैलो के प्रदेशाध्यक्ष रहने के अलावा मंत्री एवं विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसी प्रकार से झज्जर से विधायक गीता भुक्कल पांचवीं बार विधानसभा की सदस्य चुनी गई हैं और वे कैबिनेट मंत्री भी रह चुकी हैं।
17 वर्षों से दलित नेता बनते आ रहे हैं प्रदेशाध्यक्ष
गौरतलब है कि 27 अगस्त 2007 को फूलचंद मुलाना को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। वे इस पद पर सबसे अधिक समय तक 10 फरवरी 2014 तक करीब 6 साल 167 दिनों के लिए रहे। 14 फरवरी 2014 को सिरसा के तत्कालीन सांसद डा. अशोक तंवर को प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी गई। उस दौरान अशोक तंवर व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच 36 का आंकड़ा रहा। कथित तौर पर 2018 में तंवर के साथ दिल्ली में मारपीट भी हुई। जब सितंबर 2019 में पार्टी ने संगठन में बदलाव किया और तंवर की जगह 4 सितंबर 2019 को कुमारी सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया तो तंवर ने 5 अक्तूबर 2019 को पार्टी छोड़ दी। सैलजा का कार्यकाल भी लंबा नहीं रहा। कुमारी सैलजा एवं हुड्डा के बीच भी छत्तीस का आंकड़ा रहा। हुड्डा लगातार कुमारी सैलजा को पद से हटवाने को लेकर दबाव की रणनीति बनाते रहे। हुड्डा की यह रणनीति असरकारक भी रही और आखिरकार 2 साल 235 दिनों के बाद 27 अप्रैल 2022 को कुमारी सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष पद से हटाकर होडल के पूर्व विधायक उदयभान को नया अध्यक्ष बना दिया गया। खास बात यह है कि उदयभान का भी कार्यकाल अब तक 2 साल 170 दिनों का रहा है। ऐसे में 2007 से लगातार अब तक दलित नेताओं को ही हरियाणा प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई है। सियासी पंडितों का मानना है कि किसी भी वक्त कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व नए प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति कर सकता है।
दलित या जाट को बनाया जा सकता है प्रदेशाध्यक्ष
सियासी पर्यवेक्षक मानते हैं कि यदि कांगे्रस विधायक दल के पद पर किसी दलित की नियुक्ति होती है तो इस बार प्रदेशाध्यक्ष पद किसी गैर दलित नेता को दिया जा सकता है। अन्यथा इस बार भी किसी दलित नेता के हाथ में ही प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी जा सकती है। सूत्रों का कहना है कि जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए कांगे्रस का शीर्ष नेतृत्व किसी दलित या जाट को प्रदेशाध्यक्ष बना सकता है। प्रदेश में दलित समुदाय के 21 फीसदी मतदाता हैं और इस बार भाजपा को सबसे अधिक दलित वोट मिले हैं। इस बार भाजपा कांगे्रस के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रही है। ऐसे में सियासी विश्लेषकों का मानना है कि प्रदेश की सबसे अनुभवी सांसद कुमारी सैलजा को एक बार फिर प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी जा सकती है। सैलजा इससे पहले प्रदेशाध्यक्ष रह चुकी हैं।
हालांकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा से उनका 36 का आंकड़ा है और हाल के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की खेमेबाजी साफ नजर आ चुकी हैं। वैसे भी 2007 के बाद से कांग्रेस लगातार प्रदेशाध्यक्ष के पद पर दलित नेता को ही नियुक्त करती आई है। सैलजा 5 बार सांसद, 3 बार केंद्रीय मंत्री रहने के अलावा संगठन में बड़े पदों पर रह चुकी हैं। वर्तमान में वे सिरसा से सांसद हैं और संगठन में उत्तराखंड की प्रभारी के अलावा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव भी हंै। यदि विधायक दल का नेता किसी दलित को चुना जाता है तो उस सूरत में किसी जाट या अन्य वर्ग से संबंधित किसी बड़े चेहरे को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसे में यदि किसी जाट नेता के नाम पर हाईकमान की मोहर लगती है तो फिर राज्यसभा के सदस्य रणदीप सिंह सुर्जेवाला का नाम सबसे ऊपर है। सुर्जेवाला इससे पहले हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष रह चुके हैं। रणदीप को भी संगठन का लंबा अनुभव है और वे युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहने के अलावा कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी भी रहे हैं। वर्तमान में वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव एवं कर्नाटक के प्रभारी हैं।
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