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जब रथ लेकर हरियाणा के कोने-कोने में पहुंचे ताऊ

हरियाणा
जब रथ लेकर हरियाणा के कोने-कोने में पहुंचे ताऊ
कोने-कोने में पहुंचे ताऊ

जब रथ लेकर हरियाणा के कोने-कोने में पहुंचे ताऊ


हरियाणा में अब चाहे चुनाव के समय में मतदाताओं से संपर्क साधने की बात हो या फिर चुनाव से हटकर पार्टी का प्रचार करने का अभियान हो, प्रदेश के नेताओं में ‘रथ’ का चलन आम बात हो गई है और प्रदेश के अधिकांश नेता पिछले कई वर्षों से रथयात्रा के जरिए ही अपने विशेष अभियान के तहत मतदाताओं तक पहुंचने को प्राथमिकता देते रहे हैं।

यदि हरियाणा का राजनीतिक इतिहास उठाकर देखा जाए तो पता चलता है कि हरियाणा में रथयात्रा की शुरूआत देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री चौ. देवीलाल ने की थी। चौ. देवीलाल ने राज्य में न्याययुद्ध की शुरूआत 1985 में की थी और फिर वे 1986 में पहली बार न्याय रथ लेकर कांग्रेस के खिलाफ हरियाणा में निकले थे। उल्लेखनीय है कि आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन.टी. रामाराव द्वारा 1980 में शुरू की गई चैतन्य रथ यात्रा की तर्ज पर ही चौ. देवीलाल ने हरियाणा में यह रथयात्रा उस वक्त शुरू की थी।


गौरतलब है कि 1985 में चौ. देवीलाल ने तत्कालीन भजनलाल सरकार के खिलाफ हिसार से न्याययुद्ध आंदोलन शुरू किया था और उसके बाद उन्होंने 1986 में जींद में समस्त हरियाणा रैली करके सरकार के खिलाफ न्याययुद्ध का शंखनाद किया था। बस यहीं से चौ. देवीलाल एक बसनुमा रथ को लेकर प्रदेश में निकले थे और इस रथ को न्यायरथ का नाम दिया गया था।

चौ. देवीलाल द्वारा करीब 33 वर्ष पूर्व न्याय युद्ध दौरान इस्तेमाल किया गया रथ उस समय प्रदेश के लोगों के विशेष आर्कषण का केंद्र बन गया था। ताऊ देवीलाल उस समय बड़ी सभाओं में तो मंच पर जाकर लोगों को संबोधित करते हुए, जबकि छोटी सभाओं को वे इस रथ से ही संबोधित करते थे। रथ में लगी विशेष लिफ्ट के जरिए वे रथ की छत पर आकर मूढ़े पर बैठकर लोगों से रूबरू होते थे। चौ. देवीलाल द्वारा 37 वर्ष पहले शुरू किया गया खास प्रचार रथ आज प्रदेश के राजनेताओं के लिए आम बनकर रह गया है। चौ. देवीलाल के बाद चौ. ओमप्रकाश चौटाला, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुलदीप बिश्रोई व अभय सिंह चौटाला सरीखे नेता प्रचार के लिए रथ का इस्तेमाल कर चुके हैं। इसके अलावा भाजपा ने भी 2008 में प्रदेश में 3 रथ यात्राएं निकाली थीं।

राजनेताओं के इस रथ में एक घर की तरह तमाम तरह की सुविधाएं होती हैं। चौ. देवीलाल द्वारा न्याय युद्ध के दौरान जिस रथ का इस्तेमाल किया गया था। उसमें उस समय में भी तमाम तरह की सुविधाएं मुहैया थीं। उस रथ में एक बैड, डायङ्क्षनग टेबल, सोफा व टॉयलेट आदि बनाया गया था और रथ के बीच एक लिफ्ट थी जो रथ की छत पर जाकर खुलती थी। इसी रथ में उनका खाना-पीना होता था और इसी रथ में वे कपड़े इत्यादि बदलते थे और इसी में ही कुछ समय आराम कर लिया करते थे। एक तरह से वे रथ के जरिए लम्बे समय तक चले आंदोलन में लोगों के बीच ही रहे। 1987 में हरियाणा में प्रचंड बहुमत हासिल करके मुख्यमंत्री बनने के बाद चौ. देवीलाल ने जब राष्ट्रीय स्तर पर समूचे विपक्ष को कांग्रेस के खिलाफ एकजुट करने की मुहिम शुरू की तो उस वक्त भी चौ. देवीलाल ने विभिन्न मौकों पर अपने इस रथ का इस्तेमाल किया। उस समय चौ. देवीलाल द्वारा विपक्षी एकता प्रदॢशत करने के लिए नई दिल्ली के बोट क्लब पर की गई रैली में जुटी भीड़ आज भी लोगों के जेहन में है।


जब दोनों बेटों को नहीं लडऩे दिया विधानसभा चुनाव


एक ओर जहां चौ. देवीलाल समूचे विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम चलाते रहे तो वहीं उनके अपने घर में दोनों बेटों ओमप्रकाश चौटाला व रणजीत ङ्क्षसह के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर सत्ता संघर्ष भी हुआ तो ताऊ बहुत परेशान हो गए थे। एक समय ऐसा आया जब चौ. देवीलाल ने परिवार में सत्ता की लड़ाई को समाप्त करवाने के इरादे से अपने दोनों बेटों ओमप्रकाश चौटाला व रणजीत ङ्क्षसह को विधानसभा चुनाव लडऩे की इजाजत नहीं दी। हालांकि 1991 में ओमप्रकाश चौटाला ने सिरसा जिला के दड़बाकलां से व रणजीत ङ्क्षसह ने रोड़ी विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया था।

मगर चौ. देवीलाल ने दोनों बेटों को नामांकन पत्र वापिस लेने के आदेश दे दिए, जिस पर दोनों बेटों के नामांकन वापिस हुए और वे चुनाव नहीं लड़ पाए।

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