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Guru Nanak Sakhi लोहड़ी कैसे और क्यू बनाई जाती है? Lohri Kaise Aur Kyu Manate Hai?

Guru Nanak Sakhi 
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 Lohri Kaise Aur Kyu Manate Hai? 

लोहड़ी: एकता, परंपरा और दुल्ला भट्टी की प्रेरक कहानी

लोहड़ी उत्तर भारत, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार न केवल फसल की कटाई और सर्दियों के अंत का प्रतीक है, बल्कि अपने सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व के लिए भी जाना जाता है।

फसल का त्योहार और इसके ऐतिहासिक आयाम

लोहड़ी मुख्य रूप से रबी फसलों, खासकर गन्ने की कटाई का उत्सव है। यह त्यौहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले, 13 जनवरी को मनाया जाता है। लोग अलाव जलाकर उसके चारों ओर इकट्ठा होते हैं, गीत गाते हैं और रेवड़ी, मूंगफली, तिल और गुड़ जैसे प्रसाद अर्पित करते हैं। यह अनुष्ठान प्रकृति और अग्नि देवता के प्रति आभार प्रकट करने की प्राचीन परंपरा का हिस्सा है।

दुल्ला भट्टी: पंजाब का रॉबिन हुड

लोहड़ी का संबंध 16वीं सदी के महान लोकनायक दुल्ला भट्टी से है। उन्हें मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में शोषितों के रक्षक और अन्याय के खिलाफ खड़े होने वाले नायक के रूप में याद किया जाता है। दुल्ला भट्टी ने न केवल गरीब किसानों और युवतियों की मदद की, बल्कि उनकी शादियों की व्यवस्था कर उन्हें नया जीवन दिया।
लोकगीत “सुंदर मुंदरिये हो” लोहड़ी के दौरान गाया जाता है, जिसमें उनकी बहादुरी और करुणा को याद किया जाता है।

लोहड़ी का सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व

कुछ किंवदंतियां लोहड़ी को देवी सती और भगवान शिव से जोड़ती हैं, जबकि अन्य इसे प्रह्लाद और होलिका की कहानी से संबंधित मानती हैं। अग्नि को शुद्धि और शक्ति का प्रतीक माना गया है। इस त्यौहार में सामुदायिक भावना प्रमुख है, जहां परिवार और पड़ोसी मिलकर अलाव के चारों ओर नृत्य और गीतों के माध्यम से खुशी मनाते हैं।

लोहड़ी के अनूठे अनुष्ठान और परंपराएं

  1. अलाव की परंपरा:
    लोग अलाव के चारों ओर नाचते-गाते हैं और तिल, गुड़, रेवड़ी, और मूंगफली की आहुति देते हैं। यह आभार और आने वाले समय की समृद्धि की प्रार्थना का प्रतीक है।

  2. नवजात और नवविवाहितों की पहली लोहड़ी:
    परिवारों के लिए यह अवसर विशेष होता है। नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशुओं की पहली लोहड़ी बड़े उत्साह और शुभकामनाओं के साथ मनाई जाती है।

  3. पारंपरिक व्यंजन:
    मक्के की रोटी और सरसों का साग जैसे व्यंजन त्यौहार का प्रमुख हिस्सा हैं। तिल की मिठाइयां और गजक फसल की समृद्धि का प्रतीक हैं।

आधुनिकता के साथ बदलते रंग

आज लोहड़ी में पारंपरिक लोकगीत और नृत्य जैसे भांगड़ा और गिद्दा के साथ-साथ आधुनिक संगीत और आयोजन भी शामिल हो गए हैं। शहरी क्षेत्रों में इसे बड़े आयोजन और दावतों के साथ मनाया जाता है।

लोहड़ी: एकता और कृतज्ञता का संदेश

लोहड़ी न केवल फसल की खुशी का त्यौहार है, बल्कि यह न्याय, करुणा और सामुदायिक भावना का प्रतीक है। यह हमें दुल्ला भट्टी जैसे नायकों की याद दिलाता है, जिन्होंने अपने साहस और उदारता से समाज को प्रेरित किया।

लोहड़ी की लपटें हर किसी के जीवन में खुशी, समृद्धि और एकता की रोशनी फैलाएं।

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