जानें किसके बिना अधूरा है अहोई अष्टमी का व्रत, क्यों जरूरी होती है ये चीजें

अहोई अष्टमी एक विशेष पर्व है, जिसे खासकर माँ दुर्गा की उपासना और बच्चों की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है और खासतौर पर माँ अहोई की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और अपनी संतान की सुरक्षा, लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं।
इस दिन विशेष रूप से बच्चों की रक्षा और समृद्धि के लिए पूजा का आयोजन किया जाता है, और कुछ खास वस्तुएं इस व्रत के सफल और शुभ परिणाम के लिए जरूरी मानी जाती हैं। आइए जानते हैं कि अहोई अष्टमी के व्रत में कौन सी चीजें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं और किसके बिना यह व्रत अधूरा रह सकता है।
1. अहोई माता की पूजा
अहोई अष्टमी के व्रत में अहोई माता की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अहोई माता को बच्चों की रक्षा और सुखी जीवन का वरदान देने वाली देवी माना जाता है। इस दिन महिलाएं रात्रि को उपवासी रहकर अहोई माता की पूजा करती हैं।
पूजा के दौरान चाँदी की या मिट्टी की अहोई माता की मूर्ति की पूजा की जाती है। यह मूर्ति बच्चों की स्वस्थता और लंबी उम्र के लिए समर्पित होती है।
2. चित्रित चित्र या चाँदी की बर्तन
अहोई अष्टमी के दिन एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि पूजा में सात तारों का चित्र या चाँदी का बर्तन लेकर उसकी पूजा करनी होती है। यह बच्चों की उम्र और उनके अच्छे स्वास्थ्य के प्रतीक के रूप में होता है।
इस दिन व्रति महिलाएं चाँदी की कटोरी में तारों की छाया को देखकर पूजा करती हैं। इसे अहोई माता का चित्र कहा जाता है। इस चित्र को देखकर महिला अपनी संतान की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं।
3. उपवासी रहना और व्रत रखना
अहोई अष्टमी के व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उपवासी रहना होता है। इस दिन महिलाएं दिनभर उपवासी रहती हैं और रात्रि को एक बार फलाहार करती हैं।
व्रति महिलाएं दिनभर प्रार्थना और पूजा करती हैं, जिससे उनका संतान सुख और परिवार की समृद्धि में इज़ाफा होता है।
4. पानी और आटे का पात्र
पानी और आटे का पात्र इस व्रत में विशेष महत्व रखता है। महिलाओं द्वारा पानी में आटा डालकर पूजा की जाती है, जो संतान सुख और संपन्नता की कामना को दर्शाता है।
इसके माध्यम से माँ अहोई से संतान के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। यह दर्शाता है कि संतान की देखभाल और पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका पानी और आटा की होती है।
5. व्रत का समय और दिन
अहोई अष्टमी का व्रत विशेष रूप से अष्टमी तिथि को किया जाता है। समीपस्थ शनिवार या मंगलवार के दिन इस व्रत को अधिक शुभ माना जाता है, और इस दिन संतान के लिए विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं।
यदि व्रत में सही तिथि और समय का पालन नहीं किया जाता, तो व्रत का फल अधूरा रह सकता है।
6. दीपक और सजावट
व्रत में दीपक जलाना भी अत्यंत आवश्यक होता है। इस दिन दीप जलाकर घर की साफ-सफाई और शुद्धता को प्रकट किया जाता है।
यह एक प्रतिकात्मक रूप से शुभ कार्य माना जाता है, जिससे घर में सुख, समृद्धि और बुराईयों का नाश होता है।
7. फल, मिठाई और प्रसाद
व्रति महिलाएं व्रत के दौरान फल और मिठाई का भोग अर्पित करती हैं। खासकर फल जैसे सेब, केला, अनार आदि का इस्तेमाल होता है। यह संतान के लिए शुभकारी माना जाता है।
इस दिन घर में प्रसाद का वितरण करना भी आवश्यक होता है, ताकि परिवार में खुशहाली बनी रहे और संतान की उम्र लंबी हो।