हरा नहीं है हमारा हरियाणा
हरा नहीं है हमारा हरियाणा
हरियाणा शब्द व्यापक अर्थ को लिए हुए है। हरि की अनुभूति भी होती है और हरित प्रदेश का बोध भी। पर हरित प्रदेश के नाम से भी जाना जाने वाला हरियाणा व्यावहारिक पटल पर पर्यावरण के मामले में पिछड़े प्रदेशों में शुमार है। पर्यावरण के प्रति शासकीय-प्रशासकीय बेरुखी और सामाजिक स्तर पर अरुचि का नतीजा है कि राज्य में से गुजरने वाली दो मुख्य नदियां पर्यावरण प्रदूषण की एक नकारात्मक मिसाल बन गई हैं। आलम यह है कि राज्य में पिछले 26 साल में वन क्षेत्र बढऩे की बजाय 114 वर्ग किलोमीटर कम हो गया है। इस समय हरियाणा में करीब 1559 वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र है जो 1991 में 1673 वर्ग किलोमीटर था। पर्यावरण प्रदूषण का बढ़ता असर है कि राज्य में छह वर्ष से औसत से 25 से 45 प्रतिशत बरसात कम हो रही है।
दरअसल पर्यावरण जैसे मसले को लेकर कोई संजीदा नहीं है। राज्य में इस लिहाज से स्थिति बेहद ङ्क्षचताजनक है। महज 4 फीसदी भूमि पर पेड़ हैं। वन्य प्राणियों के लिहाज से भी काम नहीं हो रहा है। राज्य में करीब 48.25 वर्ग किलोमीटर में दो नैशनल पार्क हैं और करीब 233.21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 8 वन्य प्राणी अभ्यारण हैं। अभी अप्रैल माह में ही सांख्यिकी मंत्रालय की ओर से जारी पर्यावरण 2018 की एक रपट में हरियाणा में पर्यावरण के ङ्क्षचतनीय पहलू पर प्रकाश डाला गया है। यह ङ्क्षचतनीय स्थिति तब है कि जब हर बरस करीब 3 तीन करोड़ पौधे लगाए जाते है। इस बरस लक्ष्य पांच करोड़ रखा गया है। यह सब तब है कि 1700 गांवों में वन कमेटियां बनाई गई है, 2380 स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं। प्रदेश में भारी-भरकम राशि खर्च करके 28 हर्बल पार्क बनाए गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि व्यावहारिक पटल पर पर्यावरण के मामले में ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। लगाए गए पौधों में से 50 फीसदी फलीभूत नहीं होते। सत्तर फीसदी से अधिक पौधे वन महकमा मुफ्त बांटता है। यह रिकॉर्ड नहीं रहता है कि मुफ्त पौधे लेने वाले कितने किसानों ने पौधे लगाए? कितने फलीभूत हुए?
बढ़ता
नदियां हुईं प्रदूषित
दरअसल गेहूं उत्पादन, प्रति व्यक्ति आय, दूध उत्पादन, मत्स्य पालन, औद्योगिक क्षेत्र में नए आयाम रच रहे हरियाणा में पर्यावरण के लिहाज से स्थिति बेहद ही ङ्क्षचतनीय है। घग्घर एवं यमुना नदियां प्रदूषित हो गई हैं। पिछले 40 वर्ष में महज 3 फीसदी भूमि ही वन क्षेत्र के अंतर्गत कवर की जा सकी है। हर वर्ष साढ़े 4 करोड़ पौधे वन विभाग की ओर से रोपित किए जाते हैं और किसानों को नि:शुल्क दिए जाते हैं। 1988 में राष्टï्रीय वन नीति लागू की गई। उस समय राज्य में 3.52 फीसदी भूमि पर पेड़ लगे हुए थे। राज्य में उत्तर दिशा की तरफ शिवालिक का क्षेत्र जबकि दक्षिण की तरफ अरावली का क्षेत्र है, जहां पर अधिक संख्या में पेड़-पौधे हैं। इसके अलावा राज्य के शेष इलाकों में सडक़ों व नहरी तटबंधों के किनारे विभाग की ओर से पौधे लगाए जाते हैं। साथ ही हर वर्ष करीब 2 करोड़ से अधिक पौधे किसानों को नि:शुल्क बांटे जाते हैं। वन विभाग का दावा है कि पिछले 10 साल में विभाग की ओर से 21 हजार हैक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया। फिर भी यह क्या कारण है अभी तक पर्यावरण की दिशा में राज्य पिछड़ेपन का शिकार है?
52 साल में 197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कवर
वर्ष 2003 में फोरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की तरफ से जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 6 फीसदी भूमि पर ही पेड़-पौधे थे। अभी हाल में आई रिपोर्ट के मुताबिक वन क्षेत्र पौने सात फीसदी है। 2010 में 275 लाख पौधे नि:शुल्क बांटे गए। राज्य गठन के समय 1966 में 1362 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वन वनाच्छिदत था। अब क्षेत्र 1559 वर्ग किलोमीटर हो गया है। यानी 52 साल में महज 197 वर्ग किलोमीटर एरिया ही कवर किया गया। वहीं ङ्क्षचतनीय पहलू यह है कि हर साल वनों में आगजनी की घटनाओं का सिलसिला बढ़ रहा है।
हरियाणा में वन क्षेत्र (वर्ग किलोमीटर में)
वर्ष क्षेत्र
1991 1687
1995 1673
2001 1551
2011 1559
2015 1559
2017 1559
वनों में आगजनी की घटनाएं
वर्ष आगजनी
2004-05 9
2005-06 12
2006-07 48
2007-08 104
2008-09 168
2011-12 249
2013 34
2014 32
2015 22
2016 199
2017 170