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हरियाणा का सियासी इतिहास

पिता से सियासी गुर सीखने वाले चौटाला व हुड्डा ने नहीं टाली कभी अपने पिता की बात!
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जब चौटाला ने देवीलाल के निधन पर रोकर कहा नहीं रहा अब कान खींचने वाला, तो पिता रणबीर हुड्डा के कहने पर भूपेंद्र हुड्डा ने छोड़ी सिगरेट

हरियाणा का सियासी इतिहास 

पिता से सियासी गुर सीखने वाले चौटाला व हुड्डा ने नहीं टाली कभी अपने पिता की बात!

जब चौटाला ने देवीलाल के निधन पर रोकर कहा नहीं रहा अब कान खींचने वाला, तो पिता रणबीर हुड्डा के कहने पर भूपेंद्र हुड्डा ने छोड़ी सिगरेट

प्रस्तुति: संजय अरोड़ा

हरियाणा की सियासी इतिहास जहां बड़ा ही रोचक और अनूठा है तो वहीं इस प्रदेश का अब तक का सियासी सफर भी काफी दिलचस्प किस्सों को समेटे हुए है। हरियाणा में अब तक 10 राजनेता 24 बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं। इन राजनेताओं में दो मुख्यमंत्रियों के साथ एक अनूठा और मिलता-जुलता किस्सा जुड़ा हुआ है। चौधरी ओमप्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। ओमप्रकाश चौटाला ने राजनीति का पाठ अपने पिता चौधरी देवीलाल से सीखा। चौधरी देवीलाल लगभग 60 वर्ष तक राजनीति में सक्रिय रहे और वे इस दौरान दो बार देश के उपप्रधानमंत्री बनने के अलावा दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। वे तीन बार लोकसभा के सदस्य रहने के अलावा 8 बार विधायक भी चुने गए। साल 1989 के अंत में चौधरी देवीलाल ने अपने बेटे चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को अपना  राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया और उन्हें हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया।  चौ. ओमप्रकाश चौटाला अपने पिता के सिद्धांतों का पालन तो करते ही थे तो उनके निर्देशों की भी कभी उल्लंघना नहीं की।  जब चौटाला पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब चौ. देवीलाल ने सार्वजनिक मंच से कहा था कि अगर ओम जनता के काम नहीं करेगा तो वे उसके कान खींच देंगे। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ जुड़ा हुआ है। हुड्डा ने भी सियासी गुर अपने पिता चौ. रणबीर सिंह हुड्डा से सीखे और वे उनका जहां पूरा आदर करते थे, वहीं उनकी बात को भी कभी नहीं टाला। खास बात ये है कि हुड्डा जवानी के समय से धू्रमपान करने लगे थे। 2005 में जब वे हरियाणा के मुख्यमंत्री बने, तब भी उन्होंने सिगरेट नहीं छोड़ी। वे एक दिन में काफी सिगरेट पीते थे। उनके पिता चौ. रणबीर हुड्डा आर्य समाजी थे और उन्हें अपने बेटे भूपेंद्र की सिगरेट पीने की आदत अच्छी नहीं लगती थी और अंतत: एक दिन पिता के कहने पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सिगरेट का सदा के लिए त्याग कर दिया। 

जब चौटाला हुए भावुक, बोले मेरे कान खींचने वाला नहीं रहा

गौरतलब है कि हरियाणा की राजनीति का समय-समय पर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश में भी खूब चर्चा रहा है। प्रदेश के सबसे बड़े सियासी घराने के प्रमुख चौधरी देवीलाल ने हरियाणा की राजनीति में एक खास मुकाम हासिल किया और केंद्र की राजनीति तक रुतबा बनाया। साल 1989 के अंत में चौधरी देवीलाल केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो गए। 2 दिसंबर 1989 को उन्होंने अपने बड़े बेटे चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया। चौधरी देवीलाल जमीन से जुड़े हुए थे। किसान-कमेरे वर्ग को लेकर उनका काम करने का अपना एक तरीका था। जब उन्होंने पहली बार अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाया, तो सार्वजनिक मंच से संदेश दिया कि मुख्यमंत्री की कुर्सी जिम्मेदारी वाली होती है। अगर ओम आपके काम नहीं करेगा तो मैं उसके कान खींच दूंगा। 6 अप्रैल 2001 को चौधरी देवीलाल का निधन हो गया। उनके निधन के बाद नई दिल्ली में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में अपने पिता का स्मरण करते हुए चौ. ओमप्रकाश चौटाला काफी भावुक नजर आए थे। तब अपने ही पिता की बातों को याद करते हुए चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने भावुक मन से कहा था अब उनके कान खींचने वाला चला गया। यह कहकर चौटाला मंच पर ही रो पड़े थे। उल्लेखनीय है कि चौ.  देवीलाल हरियाणा की राजनीति में बरगद की तरह तो थे ही। इसके साथ ही ताऊ देवीलाल राजनीति के इनसाइक्लोपीडिया भी थे। उनका राजनीति में तजुर्बा और काम करने का तरीका और सलीका बड़ा निरााला था। ऐसे में चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने भी अपने पिता के उस तरीके और सलीके को अपनाने की कोशिश की और वे आज भी हर सभा व बैठक में चौ. देवीलाल को स्मरण करते हुए उनकी पुरानी बातों व यादों का जिक्र जरूर करते हैं। 

जब पिता के कहने पर हुड्डा ने सिगरेट का किया त्याग

इसी तरह से हरियाणा के दो बार मुख्यमंत्री रहे चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता चौ. रणबीर ङ्क्षसह हुड्डा हरियाणा ही नहीं पंजाब और देश की राजनीति में एक बड़ा चेहरा रहे हैं। वे इकलौते ऐसे राजनेता रहे, जो अलग-अलग 7 सदनों के सदस्य चुने गए। संविधान समिति के सदस्य भी चौ. रणबीर ङ्क्षसह हुड्डा थे। चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी अपने पिता चौधरी रणबीर ङ्क्षसह हुड्डा से ही राजनीति का पाठ सीखा और साल 1980 में वे राजनीति में सक्रिय हुए। हुड्डा पंचायत चुनाव के जरिए राजनीति में आए और 1991 में चौ. देवीलाल को हराकर पहली बार रोहतक से लोकसभा के सदस्य चुने गए। भूपेंद्र सिंह हुड्डा चार बार लोकसभा के सदस्य रहे। पांच बार विधायक रहे और दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री भी बने। भूपेंद्र सिंह हुड्डा पहली बार 2005 में मुख्यमंत्री बने थे और 2014 तक इस पद पर रहे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा जवानी के दिनों में सिगरेट पीने लगे थे। 1 दिन में वे 3 से 4 पैकेट सिगरेट पी जाते थे। उनकी इस आदत को भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह हुड्डा पसंद नहीं करते थे। वैसे भी रणबीर सिंह हुड्डा आर्य समाजी थे और वे आर्य समाज के सिद्धांतों को आत्मसात करते हुए जीवन जीते थे। चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जब सिगरेट पीनी जारी रखी तो उनके पिता को यह बात बिल्कुल नहीं भायी। एक दिन चंडीगढ़ से भूपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक में अपने घर पहुंचे और गाड़ी से निकले तो उनके हाथ में सिगरेट थी। पिता रणबीर सिंह हुड्डा पार्क में टहल रहे थे। बेटे को सिगरेट पीते देखा तो पास आकर बोले कि ‘भूप्पी आज के बाद सिगरेट को हाथ मत लगाना।’ वो दिन और आज का दिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सिगरेट से ऐसी तौबा कर ली और उस दिन के बाद से सिगरेट को हाथ नहीं लगाया। इस तरह हुड्डा ने अपने पिता का पूरा आदर करते हुए उनके कहने पर वर्षों पुरानी आदत को एक मिनट में बदल दिया।

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