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इस वजह से 56 वर्षों बाद भजनलाल परिवार के हाथों से निकला उनका सियासी दुर्ग

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इस वजह से 56 वर्षों बाद भजनलाल परिवार के हाथों से निकला उनका सियासी दुर्ग


हरियाणा में इस बार विधानसभा के चुनाव में कई बड़े सियासी घरानों के किले ढह गए हैं। आदमपुर विधानसभा क्षेत्र पिछले 56 वर्षों से चौ. भजनलाल परिवार का अभेद दुर्ग रहा है। हरियाणा की राजनीति में आदमपुर इकलौता विधानसभा क्षेत्र ऐसा है जहां से 1968 से लेकर 2022 तक चौ. भजनलाल परिवार के चार सदस्य 16 बार विधायक बने हैं और यह हरियाणा में अपने आप एक रिकॉर्ड है। यहां तक कि 1987 में जब चौ. देवीलाल की नाम की जबरदस्त लहर चली थी और कांग्रेस 90 में से केवल 5 सीटें ही जीत पाई थी, उस समय भी चौ. भजनलाल आदमपुर की सीट बचाने में कामयाब रहे थे और उनकी पत्नी जसमां देवी यहां से विधायक चुनी गई थीं, लेकिन अब करीब 56 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद चौ. भजनलाल परिवार को विधानसभा चुनाव में अपने घर में ही हार का सामना करना पड़ा है। रोचक पहलू यह है कि यह प्रदेश की इकलौती ऐसी सीट है जहां से भजनलाल के बाद उनकी पत्नी जसमां देवी, बेटा कुलदीप, पुत्रवधु रेणूका बिश्रोई एवं पौता भव्य बिश्रोई भी विधायक चुने गए। दिलचस्प तथ्य यह है कि चौ. भजनलाल परिवार के तीन सदस्य कुलदीप बिश्रोई, रेणूका बिश्रोई एवं भव्य बिश्रोई आदमपुर से उपचुनाव जीतकर पहली बार विधायक भी बने। इस बार यहां से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे भव्य बिश्रोई कांग्रेस के चंद्रप्रकाश से मामूली वोटों के अंतर से चुनाव हार गए हैं और इस हार का इस परिवार को इतना बड़ा सियासी आघात लगा है कि आज हार के बाद अपने समर्थकों के बीच कुलदीप बिश्रोई रो पड़े।


गौरतलब है कि आदमपुर विधानसभा सीट पर 1967 से लेकर अब तक 14 सामान्य जबकि 3 उपचुनाव हुए। आदमपुर विधानसभा सीट के 58 वर्षों के सियासी सफर में 17 चुनाव में 16 बार भजनलाल परिवार को जीत मिली। यह अपने आप में एक अनूठा रिकॉर्ड है। साल 1967 के विधानसभा चुनाव में हरी सिंह आदमपुर से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने आजाद उम्मीदवार आर सिंह को महज 251 वोटों के अंतर से पराजित किया। जीत के सबसे कम अंतर का यह रिकॉर्ड आदमपुर सीट पर आज भी बरकरार है।  खास बात यह है कि एक ही परिवार से 16 विधायक एक सीट से बने। यही नहीं आदमपुर से भजनलाल खुद 9 बार विधायक रहे। 1 बार उनकी पत्नी जसमा देवी विधायक चुनी गईं। 4 बार कुलदीप बिश्रोई विधायक बने। एक बार कुलदीप की पत्नी रेणुका बिश्रोई भी विधायक निर्वाचित हुईं और एक बार भव्य बिश्रोई भी विधायक चुने गए। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है कि एक सीट पर पहले पिता और मां विधायक बने। उसके बाद बेटा और उनकी पुत्रवधु व पौत्र भी विधायक चुने गए। 


पहली बार 1968 में आदमपुर से विधायक बने थे भजनलाल


उल्लेखनीय है कि चौधरी भजनलाल साल 1968 में पहली बार आदमपुर से विधायक बने। इसके बाद वे 1972, 1977, 1982, 1991, 1996, 2000, 2005 और 2008 के उपचुनाव में विधायक निर्वाचित हुए। साल 1987 में लोकदल की लहर के बीच चौधरी भजनलाल की पत्नी जसमा देवी  पहली बार आदमपुर से विधायक बनने में सफल हुईं। साल 1998 में हुए उपचुनाव के जरिए कुलदीप बिश्रोई भी पहली बार विधानसभा में पहुंचने में कामयाब रहे। इसके बाद कुलदीप , 2009, 2014 और 2019 में भी आदमपुर सीट से विधायक चुने गए। इसी तरह से साल 2011 में हुए उपचुनाव के जरिए रेणुका बिश्रोई ने सियासत में एंट्री की और वे भी पहली बार विधायक चुनी गईं।  इसी प्रकार से नवंबर 2022 में आदमपुर उपचुनाव जीतकर भव्य विधायक निर्वाचित हुए।


यह रहा है आदमपुर सीट का अतीत


चुनाव-दर-चुनाव नजर डालें तो 1967 के पहले चुनाव में कांग्रेस के हरी सिंह ने 16955 वोट हासिल करते हुए 251 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। आदमपुर के पहले चार चुनावों में आजाद उम्मीदवार ही मुकाबले में रहे। 1968 के विधानसभा चुनाव में चौधरी भजनलाल ने 23723 वोट हासिल करते हुए आजाद उम्मीदवार बलराज सिंह को 10044 वोटों के अंतर से पराजित किया। 1972 के विधानसभा चुनाव में चौधरी देवीलाल ने भजनलाल के सामने आजाद उम्मीदवार के रूप में ताल ठोकी। कांग्रेस से उम्मीदवार भजनलाल ने 28928 वोट लेते हुए चौधरी देवीलाल को 10961 मतों के अंतर से पराजित कर दिया। 1977 का चुनाव जीतकर भजनलाल ने इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाई। 1977 के चुनाव में भजनलाल को 33,193 वोट मिले। इस बार उन्होंने आजाद उम्मीदवार मोहर सिंह को 20803 वोटों के अंतर से हराया। इसी प्रकार से 1982 में चौधरी भजनलाल ने 42,227 वोट लेते हुए लोकदल के नरेंद्र सांगवान को 24712 मतों के अंतर से हराया। 1987 में लोकदल की लहर के बीच चौधरी भजनलाल की पत्नी जसमां देवी ने सक्रिय सियासत में कदम रखा। जसमां देवी ने करीब 41152 वोट लेते हुए धर्मपाल सिंह को 9272 मतों के अंतर से हराया, जबकि साल 1991 के चुनाव में चौ. भजनलाल ने जनता पार्टी के हरी सिंह को 31,596 मतों के अंतर से पराजित किया और वे पांचवीं बार विधानसभा में पहुंचे। 1996 के विधानसभा चुनाव में भजनलाल ने हरियाणा विकास पार्टी के सुरेंद्र सिंह को करीब 20007 वोटों के अंतर से हरा दिया।


1998 में उपचुनाव जीतकर विधायक चुने गए थे कुलदीप बिश्रोई 


उल्लेखनीय है कि साल 1998 में आदमपुर में उपचुनाव जीतकर कुलदीप बिश्रोई पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। इसी प्रकार से साल 2000 के चुनाव में चौधरी भजनलाल ने 63174 वोट लेते हुए भाजपा के प्रो. गणेशीलाल को 46,057 मतों के अंतर से पराजित किया। साल 2005 में भजनलाल ने रिकॉर्ड 71081 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की और वे 8वीं बार विधायक बने। इसके बाद 2008 में चौ. भजनलाल आदमपुर उपचुनाव जीतकर विधायक चुने गए। साल 2009 में कुलदीप बिश्रोई ने हजकां की टिकट पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस के जयप्रकाश को 6015 वोटों के अंतर से पराजित किया। 2014 में कुलदीप बिश्रोई ने हजकां की टिकट पर चुनाव लड़ते हुए इनैलो के कुलदीप सिंह बैनीवाल को 17 हजार 249 मतों से पराजित किया। इसी प्रकार से 2019 मे हुए विधानसभा चुनाव में कुलदीप बिश्रोई ने 63693 वोट लेते हुए भाजपा की सोनाली फौगाट को 29 हजार 471 मतों के अंतर से पराजित किया। आदमपुर में चार उपचुनाव भी हुए। साल 1998 के उपचुनाव में कुलदीप बिश्रोई पहली बार विधायक बने। इसी तरह से साल 2008 में हुए उपचुनाव में चौधरी भजनलाल को जीत मिली तो साल 2011 के उपचुनाव में रेणुका बिश्रोई पहली बार विधानसभा में पहुंची। 2022 के उपचुनाव में भव्य बिश्रोई विधायक निर्वाचित हुए।


भतीजा चुनाव हारा तो चाचा चंद्रमोहन कांग्रेस की टिकट पर पंचकूला से जीते


खास बात यह है कि चौ. भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्रोई जहां भाजपा में हैं तो बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्रोई कांग्रेस में हैं। भजनलाल के पौत्र भव्य बिश्रोई आदमपुर से चुनाव हार गए हैं तो उनके चाचा चंद्रमोहन बिश्रोई कांग्रेस की टिकट पर पंचकूला से विधायक निर्वाचित हुए हैं। चंद्रमोहन ने पंचकूला में भाजपा प्रत्याशी ज्ञानचंद गुप्ता को कड़े मुकाबले में करीब 1900 वोटों के अंतर से हराया है। चंद्रमोहन 1996, 1996, 2000 और 2005 में कालका से विधायक निर्वाचित हो चुके हैं और वे 2005 से लेकर 2008 तक कांग्रेस की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। विशेष बात यह है कि चौ. भजनलाल के भतीजे दुड़ाराम भी इस बार फतेहाबाद से चुनाव हार गए हैं।

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