logo

Chanakya Niti: स्त्री और धन में से किसे चुने? जाने क्या कहती है चाणक्य नीति

Chanakya Niti: स्त्री और धन में से किसे चुने? जाने क्या कहती है चाणक्य नीति

Chanakya Niti: चाणक्य ने पहले मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त की सत्ता को बढ़ाने में सहायता की थी। मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए उन्हें पूरा श्रेय दिया जाता है। चाणक्य ने सम्राट चंद्रगुप्त और उनके पुत्र बिन्दुसार दोनों के मुख्य सलाहकार के रूप में कार्य किया था।

चाणक्य एक प्राचीन भारतीय शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और शाही सलाहकार थे। उन्हें पारंपरिक रूप से कौटिल्य या विष्णुगुप्त के रूप में पहचाना जाता है, जिन्होंने प्राचीन भारतीय राजनीतिक ग्रंथ अर्थशास्त्र को लिखा था, जो लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व और तीसरी शताब्दी के बीच का एक पाठ था।

मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यंवसीदति।।

प्रथम अध्याय के चतुर्थ श्लोक में चाणक्य ने लिखा है कि मूर्ख शिष्य को उपदेश देने दुष्ट व्यभिचारिणी स्त्री का पालन-पोषण करने, धन नष्ट होने तथा दुखी व्यक्ति के साथ व्यवहार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट उठाना पड़ता है।

दुखी व्यक्तियों से व्यवहार रखने से चाणक्य का तात्पर्य हैं कि जो व्यक्ति अनेक रोगों से पीड़ित हैं और जिनका धन नष्ट हो चुका है, ऐसे व्यक्तियों से किसी प्रकार का संबंध रखना बुद्धिमान मनुष्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इसी प्रकार दुष्ट और कुलटा स्त्री (अनेक पुरूषों से संबंध रखनेवाली स्त्री) का पालन-पोषण करने से सज्जन और बुद्धिमान व्यक्तियों को दुख ही प्राप्त होता है ।

दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः ।।

प्रथम अध्याय के पंचम श्लोक में चाणक्य ने लिखा है कि बोलने वाली, दुराचारिणी स्त्री और धूर्त, दुष्ट स्वभाव नौकर और ऐसे घर में निवास जहां सांप के होने की दुष्ट स्वभाव वाली, कठोर वचन वाला मित्र, सामने बोलने वाला मुंहफट संभावना हो, ये सब बातें मृत्यु के समान हैं।

जिस घर में दुष्ट स्त्रियां होती हैं, वहां गृहस्वामी की स्थिति किसी मृतक के समान ही होती है, क्योंकि उसका कोई वश नहीं चलता और भीतर ही भीतर कुढ़ते हुए वह मृत्यु की ओर सरकता रहता है। इसी प्रकार दुष्ट स्वभाव वाला मित्र भी विश्वास के योग्य नहीं होता, न जाने कब धोखा दे दें। जो नौकर अथवा आपके अधीन काम करने वाला कर्मचारी उलटकर आपके सामने जवाब देता है, वह कभी भी आपको असहनीय हानि पहुंचा सकता है। ऐसे सेवक के साथ रहना अविश्वास के घूंट पीने के समान है। इसी प्रकार जहां सांपों का वास हो, वहां रहना भी खतरनाक है। न जाने कब सर्पदंश का शिकार होना पड़ जाए।

इसी अध्याय में चाणक्य ने लिखा है कि किसी कष्ट अथवा आपत्तिकाल से बचाव के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए, जरूरत पड़े तो धन खर्च करके भी स्त्रियों की रक्षा करनी चाहिए। परंतु स्त्री और धन से भी आवश्यक है कि व्यक्ति स्वयं की रक्षा करें।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now