अलविदा -2024 सालभर हरियाणा में चलता रहा किसान आंदोलन
अलविदा -2024सालभर हरियाणा में चलता रहा किसान आंदोलन
-फरवरी माह से शंभु बॉर्डर पर अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठे हैं किसान
-34 दिन से आमरण अनशन पर बैठे डल्लेवाल की बिगड़ी तबीयत
प्रस्तुति: संजय अरोड़ा
हरियाणा में साल 2024 में बड़े सियासी घटनाक्रमों के बीच ही किसानों का आंदोलन 300 दिनों से जारी है। इस साल फरवरी में किसानों ने अंबाला के शंभु बॉर्डर पर अपना धरना शुरू किया। इसी साल सितंबर में किसानों ने दिल्ली कूच का ऐलान किया और नवंबर माह में शंभु बॉर्डर पर किसानों व पुलिस में कई बार टकराव की स्थिति पैदा हुई। पुलिस की ओर से वाटर कैनन का भी इस्तेमाल किया गया। पिछले माह किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल खन्नौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठ गए और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा। डल्लेवाल की स्थित इस समय अत्यंत नाजूक बनी हुई है।
दरअसल किसान अपनी एक दर्जन से अधिक मांगों को लेकर हरियाणा में आंदोलन कर रहे हैं। किसान नेता जगजीत डल्लेवाला 34 दिन से आमरण अनशन पर बैठे हैं और उनकी तबीयत भी लगातार बिगड़ रही है। किसानों को 102 खापें अपना समर्थन दे चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि किसानों ने एक बार फिर से एम.एस.पी. देने और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने को लेकर इस साल 10 फरवरी से शंभु बॉर्डर पर पड़ाव डाला। इसके बाद मई माह में संसदीय चुनाव आ गए। कुछ माह बाद ही अक्तूबर में विधानसभा के चुनाव हुए। विशेष बात यह है कि दिल्ली में 2020 से लेकर 2021 तक हुए आंदोलन में तमाम किसान संगठन एक साथ थे। इस बार किसान यूनियन अलग-अलग खेमों में बंटी हंै। कुछ किसान यूनियनों के नेताओं ने तो फरवरी 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा लिया। ऐसे में किसान यूनियनों की धार कमजोर पड़ती नजर आई। अब किसान नेता डल्लेवाल आमरण अनशन पर बैठे हैं तो इस दौरान प्रदेश के अनेक जिलों में इस साल तीन बार कुछ दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएं भी बाधित रही। किसानों के आंदोलन को इनैलो नेता अभय चौटाला, कांग्रेस महासचिव कुमारी सैलजा, पहलवान व जुलाना की विधायक विनेश फौगाट, पहलवान बजरंग पूनिया भी अपना समर्थन दे चुके हैं।
ये हैं किसानों की प्रमुख मांगें
किसानों की मांग है कि सभी फसलों की एम.एस.पी. पर खरीद की गारंटी का कानून बनाया जाए। इसके अलावा डा. स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से कीमत तय हो, किसान खेत मजदूर का कर्ज माफ हो और किसानों को उचित पैंशन दी जाए। किसानों के अनुसार भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 दोबारा लागू किया जाए, लखीमपुर खीरी कांड के देशों को सजा दी जाए, मुक्त व्यापार समझौते पर रोक लगाई जाए, विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए। इसके अलावा किसानों की मांग है कि मनरेगा में हर साल 200 दिन का काम दिया जाए और 700 रुपए मजदूरी सुनिश्चित की जाए। किसान आंदोलन में मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा और सरकारी नौकरी दी जाए, नकली बीज, कीटनाशक, दवाइयां व खाद वाली कंपनियों के खिलाफ कड़ा कानून बनाया जाए, मिर्च हल्दी एवं अन्य मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए और संविधान की धारा 5 की सूची को लागू कर आदिवासियों की जमीन की लूट बंद की जाए।
378 दिन चले आंदोलन में हरियाणा के किसानों की रही थी बड़ी भूमिका
खास बात यह है कि 26 नवंबर 2020 से लेकर दिसंबर 2021 तक 378 दिन तक दिल्ली के टिकरी, सिंघू, शाहजहां व कुंडली बॉर्डर पर चले आंदोलन में हरियाणा के किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। किसान आंदोलन के दौरान 259 एफ.आई.आर. दर्ज करते हुए 48 हजार किसानों पर केस दर्ज हुए थे जबकि कुल 750 शहीद हुए किसानों में से हरियाणा के भी 150 किसान शहीद हुए थे।
खास बात यह है कि उस समय किसान आंदोलन की चिंगारी हरियाणा में ही फूटी थी। हरियाणा में सितम्बर 2020 से ही तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों की ओर से विरोध शुरू हो गया था। 10 सितम्बर 2020 को हरियाणा के पिपली में किसानों ने रैली रखी। इस दौरान किसानों पर लाठीचार्ज हुआ। इसके बाद 6 अक्तूबर 2020 को किसानों ने सिरसा में रैली की। इस रैली में कई किसान नेता व पंजाब के कलाकारों ने शिरकत की। इस रैली के बाद जैसे ही किसानों ने सिरसा के बरनाला रोड पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की कोठी की ओर कूच किया पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। बाद में सिरसा में किसान शहीद भगत ङ्क्षसह स्टेडियम में पड़ाव डालकर बैठे रहे। विपक्षी दलों की ओर से भी इसे मुद्दा बनाया गया। नवम्बर 2020 के दूसरे पखवाड़े में पंजाब के किसान हरियाणा के सीमावर्ती इलाकों में बैठ गए और इसके बाद पंजाब के किसान संगठनों ने 26 नवम्बर को दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया।
पंजाब के किसानों ने दिल्ली कूच के लिए हरियाणा के बॉर्डर इलाकों से होकर जाना था। हरियाणा सरकार ने 25 नवम्बर तक सभी बॉर्डर इलाकों को सील कर दिया। बड़े-बड़े पत्थर लगाए गए। कई लेयर की बेरीकेडिंग की गई। पर किसान नहीं रुके। सब कुछ हटाते हुए दिल्ली के ङ्क्षसघू, टिकरी, गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचे और वहां पर पड़ाव डाल लिया। इसके बाद हरियाणा के किसान भी यहां पहुंचने लगे। बाद में राजस्थान और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान भी आने लगे।