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19 साल में 10 मीटर नीचे चला गया भूजल स्तर

19 साल में 10 मीटर नीचे चला गया भूजल स्तर
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हरियाणा

19 साल में 10 मीटर नीचे चला गया भूजल स्तर


हरियाणा में भूजल के लिहाज से स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। पिछले दो दशक में हरियाणा में भूजल स्तर 10.18 मीटर तक नीचे चला गया है। 2013-18 की अवधि के दौरान 2.41 मीटर भूजल स्तर नीचे पहुंचा है। हर साल करीब आधा मीटर भूजल के नीचे जाने से आने वाले समय में संकट पैदा हो सकता हे

। सबसे अधिक ङ्क्षचताजनक स्थिति फतेहाबाद, कुरुक्षेत्र, कैथल व  महेंद्रगढ़ जिलों में हैं। हरियाणा महालेखाकार की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार फतेहाबाद में 1999 की तुलना में 2018 में भूजल स्तर 23.36, कुरुक्षेत्र में 21.86 मीटर, कैथल में 21.55 मीटर, महेंद्रगढ़ में 23.53 मीटर तक नीचे चला गया है। धान का बढ़ता रकबा, ट्यूबवेलों की संख्या में लगातार हो रहे इजाफे के बाद यह स्थिति पैदा हुई है। हरियाणा में साल 1999 में औसतन 9.39 मीटर पर भूजल उपलब्ध था तो जब 19.57 मीटर तक पहुंच गया है। 


दरअसल हरियाणा में भूजल स्तर के लिहाज से स्थिति अब संकटप्रद होने लगी है। ङ्क्षचतनीय पहलू यह है कि साल-दर-साल धान का एरिया बढ़ रहा है। हरियाणा में साल 1966 में धान का रकबा 1 लाख हैक्टेयर था जो अब 13 लाख हैक्टेयर से अधिक हो गया है। ङ्क्षचता की बात है कि प्रदेश में पिछले 50 साल में नलकूपों की संख्या 30 गुणा बढ़ गई है। 1966 में डीजल आधारित 7767 जबकि बिजली आधारित 20190 नलकूप थे

। 2015 में डीजल आधारित नलकूपों की संख्या 301986, जबकि बिजली आधारित नलकूपों की संख्या 575165 हो गई है। यह भी एक ङ्क्षचतनीय तथ्य है कि 1966 में 3 लाख 2 हजार हैक्टेयर भूमि नलकूपों से ङ्क्षसचित होती थी। अब 17 लाख 21 हजार भी नलकूपों की जरिए ङ्क्षसचित हो रही है। 


मौसम का मिजाज भी बदला


ङ्क्षचता की बात यह भी है कि साल-दर-साल मौसम के गड़बड़ाते मिजाज के चलते  प्रदेश में वर्षा भी कम हो रही है। वर्ष 1995 में 862 मिलीमीटर वर्षा हुई। 96 में 702, 98 में 621 मिलीमीटर बारिश हुई। 2004 में महज 555 जबकि 2005 में 619 मिलीमीटर बरसात हुई। 2009 में तो सूबे में सूखे का आलम रहा और 300 मिलीमीटर से भी कम बरसात हुई। 2010 में 671, 2011 में 456, 2012 में 613, 2013 में 614 जबकि 2014 में 379 मिली मीटर बरसात ही हुई। पिछले वर्ष 600 मिलीमीटर से कम बरसात हुई। जाहिर है कि इस दिशा में कृषि विभाग को संजीदा प्रयास करने होंगे। भूजल जैसे गंभीर मसले पर सरकार को भी गंभीर कदम उठाने होंगे और इस दिशा में कोई ठोस योजना व्यावहारिक पटल पर लागू करनी होगी।

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