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बस व रिक्शा में सफर करता था उपप्रधानमंत्री का यह बेटा

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बस व रिक्शा में सफर करता था उपप्रधानमंत्री का यह बेटा


15 फरवरी 1939 को जन्मे प्रताप चौटाला ने ग्रेजुएट किया और उसके बाद लॉ की डिग्री की। 28 बरस की उम्र में ही वे सक्रिय सियासत में आ गए। उनके पिता चौधरी देवीलाल ने 1967 के विधानसभा चुनाव में प्रताप को कांग्रेस की टिकट दिलवाई।

प्रताप चौटाला ने 20208 वोट हासिल करते हुए लालचंद खोड को 2647 वोटों के अंतर से हराया। भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिराने के वक्त प्रताप ने भी राव बीरेंद्र ङ्क्षसह का साथ दिया था। 1971 में देवीलाल ने कांग्रेस से किनारा कर लिया था। 1972 में देवीलाल ने कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़ा और साल 1977 में जनता पार्टी के बैनर तले देवीलाल ने सियासी संघर्ष जारी रखा। 1977 से पहले ऐसा दौर भी आया जब प्रताप चौटाला अपने ही पिता से बागी हो गए। 1977 में प्रताप चौटाला ने रोड़ी से आजाद उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक दी।

उन्हें करीब 8160 वोट मिले। इसके कुछ समय बाद प्रताप ने फिर से घर वापसी कर ली और वे अपने पिता की शरण में आ गए। 1982 में प्रताप चौटाला ने लोकदल की टिकट पर रोड़ी से चुनाव लड़ा। उन्हें करीब 21101 वोट मिले और वे कांग्रेस के जगदीश नेहरा से करीब 11 हजार वोटों के अंतर से हार गए। मन के मौजी प्रताप इसके बाद फिर से देवीलाल से बागी होकर कांग्रेस में चले गए और बाद कांग्रेस भी छोड़ दी। 1987 में चौधरी देवीलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। उन्होंने प्रताप चौटाला को लघु उद्योग निगम का चेयरमैन बनाया।

खैर 1991 में प्रताप ने फिर से कांग्रेस ज्वाइन कर ली। पर साल 1982 के बाद उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा। साल 2007 में प्रताप चौटाला ने भजनलाल की अगुवाई वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस को ज्वाइन किया। 2010 में फिर से वे कांग्रेस में आ गए। जनवरी 2013 में जब प्रताप के बड़े भाई ओमप्रकाश चौटाला को जेबीटी मामले में सजा हुई तब पहली बार भावनात्मक रूप से वे टूट गए थे। अपने भाई के हक में खड़े हो गए। उन दिनों वे काफी भावूक रहने लगे। उनकी तबीयत भी खराब होने लगी।

उन्हें कैंसर हो गया और जून 2014 में उनकी मौत हो गई। प्रताप एक बहुत ही कमाल के इंसान थे। वे सहज और सरल थे। सादगी पसंद और अध्ययन में रूचि रखने वाले। वे दशकों पुरानी राजनीतिक न्यूज की कङ्क्षटग, किस्सों-कहानियों को सहेज कर रखते थे। उन्हें सियासी इन्साइक्लोपीडिया कहा जाता था।

उनकी खासियत थी कि वे अक्सर बस से सफर करते थे। गांव चौटाला से चंडीगढ़ और सिरसा भी बस पर आते-जाते थे। बस से उतरकर पैदल ही चला करते थे। वे मुद्दों और मसलों पर अक्सर पत्रकार वार्ताएं करते थे। उनकी पत्रकार वार्ता एजैंडा बेसड होती थी। एजैंडे से इत्तर सवाल पूछने पर असहज हो जाते थे। वे अपने बेबाक बयानों पर चर्चा में रहते थे।

खुद प्रताप अपने-आप को बागी कहने से हिचकते नहीं थे। खुलकर खुद को बागी बोलते थे। बेशक प्रताप की तरह से रणजीत ङ्क्षसह ने भी उस समय अपने पिता की पार्टी लोकदल से किनारा कर लिया था जब चौटाला और रणजीत के बीच सियासी वर्चस्व की लड़ाई हावी हो गई थी। 1987 में रणजीत ङ्क्षसह कृषि मंत्री रहे। पर देवीलाल जब केंद्र की राजनीति में चले गए और तो चौटाला पूरी तरह से हावी हो गए थे। वे जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बन गए और साल 1990 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए। उस समय देवीलाल भी काफी परेशान थे। जाने-माने पत्रकार राजीव शुक्ला को दिए एक इंटरव्यू में तब देवीलाल ने कहा था कि दोनों मुख्यमंत्री बनना चाहत

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