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नरगड़ा गांव की अनोखी परंपरा: हर साल निकलती है बिना दुल्हन की बारात

बिना दुल्हन की बारात
उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के नरगड़ा गांव की अनोखी परंपरा: हर साल निकलती है बिना दुल्हन की बारात

होली पर निकलती है अनोखी बारात
शादियों और त्योहारों के रंगीन माहौल में भारत में कई अनोखी परंपराएं देखने को मिलती हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के नरगड़ा गांव में हर साल होली के दिन एक अनूठी शादी होती है। इस शादी में दूल्हा तो सज-धजकर तैयार होता है, सभी रस्में निभाई जाती हैं, लेकिन बारात को बिना दुल्हन के लौटना पड़ता है। इस बार गांव के विश्वम्भर दयाल मिश्रा 42वीं बार दूल्हा बने, लेकिन उन्हें फिर से बिना दुल्हन के लौटना पड़ा।

सैकड़ों साल पुरानी परंपरा
नरगड़ा गांव में होली केवल रंगों और उत्सव का पर्व नहीं है, बल्कि यहां की यह अनोखी शादी भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रहती है। हर साल होली के दिन शादी की पूरी रस्में निभाई जाती हैं। दूल्हा घोड़ी पर सवार होता है, बैंड-बाजे की धूम मचती है और बारात पूरे उल्लास के साथ निकलती है। इस वर्ष भी विश्वम्भर दयाल मिश्रा ने पूरी शिद्दत से इस रस्म को निभाया। शादी की सभी परंपराएं, जैसे जयमाला और फेरे, पूरी की जाती हैं, लेकिन अंत में बारात बिना दुल्हन के लौट आती है।

क्यों निभाई जाती है यह परंपरा?
इस अनोखी शादी के पीछे एक ऐतिहासिक मान्यता जुड़ी हुई है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह परंपरा गांव की समृद्धि और खुशहाली के लिए निभाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि यह रिवाज सैकड़ों साल पहले शुरू हुआ था और इसमें दूल्हा पूरे गांव की सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, इसकी सटीक उत्पत्ति का कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन गांववाले इसे पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ निभाते आ रहे हैं।

लोगों के लिए कौतूहल का विषय
इस अनोखी शादी को देखने के लिए आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। होली के रंगों के बीच यह बारात एक अलग ही नजारा प्रस्तुत करती है। बैंड-बाजे की धुन पर नाचते लोग, उत्सव का माहौल और फिर बिना दुल्हन के लौटती बारात—यह सब किसी फिल्मी दृश्य से कम नहीं लगता। विश्वम्भर दयाल मिश्रा ने 42वीं बार यह जिम्मेदारी निभाई और हर बार की तरह इस बार भी वे पूरी भक्ति और समर्पण के साथ इस परंपरा का हिस्सा बने।

संस्कृति और परंपरा का प्रतीक
यह परंपरा जितनी अनोखी है, उतनी ही रोचक भी है। जहां आमतौर पर शादी दो लोगों के मिलन का प्रतीक होती है, वहीं नरगड़ा गांव की यह बारात अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। विश्वम्भर दयाल मिश्रा की यह 42वीं कोशिश इस परंपरा की गहराई और महत्व को उजागर करती है। हो सकता है कि आने वाले वर्षों में भी यह रिवाज यूं ही चलता रहे और लोगों के लिए आश्चर्य और उत्सुकता का विषय बना रहे। यदि आप कभी लखीमपुर खीरी जाएं, तो होली के दिन इस अनोखी बारात को देखने का मौका न गंवाएं।

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