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बहुत ही पेचीदा है अमेरिका का चुनाव सिस्टम

America's election system is very complicated
donald
AMERICA ELECTION

इस बार कहा जा रहा कि #सात_स्विंग_स्टेट हैं।
1992 में जब क्लिंटन जीता था उस समय 22 स्विंग स्टेट थे जिन्होंने चुनाव पलट दिया था।

अमरीका का चुनाव बड़ा अजीब है।

आसान भाषा मे इसे ऐसे समझो कि 538 सीटें हैं।

लेकिन इनमें डायरेक्ट चुनाव नहीं होता कि वहां के सांसद को वोट दिया और फिर जिस पार्टी के ज्यादा सांसद उसका राष्ट्रपति बन गया।

538 में से 100 सीट सेनेटर की होती हैं।
हर राज्य से 2 सेनेटर चुनकर आते हैं।

438 को डेलीगेट कहते हैं।

इनका चुनाव राज्य की आबादी के हिसाब से होता है।

जैसे किसी राज्य में 10 लाख आबादी है और 10 डेलीगेट चुनने हैं तो हर सीट पर 1 लाख वोटर हुए।
वहीं अगर कहीं की आबादी 5 लाख है और वहां से 10 डेलीगेट चुनने हैं तो हर सीट पर 50 हजार वोटर हैं।

इस तरह राज्यों में देखा जाता है कि कहां 5 हजार या 10 हजार वोट का स्विंग हो सकता है।
इन्हें ही स्विंग स्टेट कहते हैं।

लेकिन बात इतनी भर भी नहीं है। क्योंकि अमरीका के कई राज्य छोटे हैं और कई बड़े लेकिन ये भी नहीं कर सकते कि बड़े राज्य को आबादी के हिसाब से बहुत ज्यादा डेलीगेट्स दे दें वरना फिर तो सबका फोकस उस राज्य में हो जाएगा। इसलिए सब राज्यों की फिक्स सीट है।
अब अगर किसी राज्य में ही 5 करोड़ लोग हैं तो भी अगर उन्हें 20 सीट ही देनी है तो पर सीट पर बन गए 25 लाख वोटर।
लेकिन ऐसा भी नहीं कर सकते कि यदि छोटे राज्य की जनसंख्या 50 लाख है तो उन्हें 2 ही सीट दी जाए, तो यदि उनको 5 सीट दी जाती है तो वहां की प्रत्येक सीट पर 10 लाख वोटर।
ये बस उदाहरण है समझने को।

लेकिन अभी भी झोल है।

क्योंकि बात सिर्फ इतनी नहीं कि किन राज्यों से किनके कितने डेलीगेट्स चुनकर आते हैं।
क्योंकि यदि किसी राज्य की 20 सीट पर मान लो कि रिपब्लिकन के 11 आये और डेमोक्रेट्स के 9 तो ऐसा नहीं कि दोनों पार्टियों की 11 और 9 सीट हो गयी, बल्कि यहां ये नियम है कि वो पूरा ही राज्य रिपब्लिकन जीत गया अर्थात 20 की 20 सीटें उसकी हो गयी हैं।

इस तरह हर राज्य में लड़ाई चलती है बहुमत लाने की, ताकि वहां की सारी सीट उस पार्टी की हो जाएं।

और यहीं पर स्विंग स्टेट का खेल है कि यदि कहीं के वोटर का पता नहीं चल रहा कि किसे वोट देगा तो उधर ज्यादा प्रचार होता है कि हमें वोट दे।
बाकी में माना जाता है कि उधर तो या तो रिपब्लिकन ही जीतेंगे क्योंकि वो राज्य रिपब्लिकन का गढ़ हैं या Vice versa

और इसी की काट करने को दूसरी पार्टी खासकर डेमोक्रेट्स वहां इल्लीगल वोटर भर रही है ताकि रिपब्लिकन के गढ़ में उसके वोटर कम हो जाएं और स्विंग स्टेट में तो वो पक्का ही जीत जाएं।।

उदाहरण के लिए जिस पेंसिल्वेनिया में ट्रम्प पर गोली चली वहां पिछली बार डेमोक्रेट्स जीत गए थे। लेकिन उससे पिछली बार ट्रम्प जीता था।
तो इस तरह के स्विंग स्टेट में दोनों पार्टी ज्यादा मेहनत कर रही है।

इस तरह 538 का आधा अर्थात 270 सीट जो जीतेगा, उनका राष्ट्रपति जीत जाएगा।

बाकी, ये भी हो सकता है कि अभी जिन 7 स्विंग स्टेट की बात हो रही, नतीजों के समय पता चले कि उससे ज्यादा स्विंग स्टेट निकले जैसे क्लिंटन के समय 22 स्टेट में फेरबदल हो गया था।

बाकी, देखो क्या होता है। कल रात से वहां फाइनल वोटिंग होगी, जब वहां की सुबह हो रही होगी क्योंकि अमरीका हमसे 11 घण्टे पीछे है।।

और फिर असली खेल शुरू होगा काउंटिंग के समय जब बड़ा तमाशा होगा, यानि एक दूसरे पर धांधली के आरोप लगेंगे।
इसी वजह से 5 नवम्बर को चुनाव होता है लेकिन राष्ट्रपति की शपथ 20 जनवरी को ली जाती है।
1 महीने तो इनकी गिनती ही चलती है और फिर 1 महीने इन्हें हार स्वीकारने में लगते हैं जिस बीच ये कोर्ट तक में दरवाजा खटखटा रहे होते हैं।

इसी वजह से अमरीकी कहते हैं कि इस चुनाव सिस्टम को बदलकर सिंपल किया जाए ,, जैसे भारत जैसे देश मे होता है।।

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