Haryana Politicas - हरियाणा की राजनीति मे आया राम गया राम की परंपरा है पुरानी, पढे पुराने राजनीतिक किस्से
HARDUM HARYANA NEWS
NAVDEEP SETIA की कलम से
हरियाणा की राजनीति का मिजाज बड़ा अनूठा है। आया राम गया राम की राजनीति से लेकर लालों की अपनी एक सियासी परम्परा रही। गांव की पंचायत से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत तक अनेक राजनेताओं ने दस्तक दी। इसके साथ ही हरियाणा में अफसरशाही को भी राजनीति रास आई। वर्तमान में हिसार के सांसद बृजेंद्र सिंह आई.ए.एस. अधिकारी रह चुके हैं। इसी तरह से सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल पहले आई.आर.एस. थीं। ये दोनों ही राजनेता वी.आर.एस. लेकर सियासत में आए। हिसार से भाजपा के उम्मीदवार रहे बृजेंद्र सिंह ने करीब 6 लाख 3 हजार वोट लेेते हुए करीब 3 लाख 14 हजार वोटों से पराजित किया। इसी तरह से सिरसा से सुनीता दुग्गल ने कांग्रेस के डा. अशोक तंवर को करीब 3 लाख 9 हजार वोटों से हराया। भाजपा के विधायक अभय ङ्क्षसह यादव भी एच.सी.एस. रहे हैं।
आई.ए.एस. रहे स्वामी ने चौ. भजनलाल को हराया
हरियाणा में अफसर लोग भी सियासत में अक्सर ताल ठोकते रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री रह चुके आइडी स्वामी हरियाणा काडर के आई.ए.एस. रहे हैं। वे साल 1991 में राजनीति में सक्रिय हुए। वे भारतीय जनता पार्टी में संगठन में कई अहम पदों पर रहे और पहली बार 1996 में करनाल से सांसद चुने गए। एच.सी.एस. से आई.ए.एस. बने स्वामी कमिश्नर के पद तक पहुंचे थे। करनाल से स्वामी ने भजनलाल को लोकसभा का चुनाव हराया। भजनलाल जब मुख्यमंत्री होते थे तब स्वामी उनके गृह जिले में उपायुक्त थे। 1999 के संसदीय चुनाव में कारगिल युद्ध का बड़ा असर नजर आया। भाजपा-इनैलो गठबंधन ने यह चुनाव मिलकर लड़ा था और सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस ने बड़े चेहरों को मैदान में उतारा। करनाल सीट से आई.डी. स्वामी ने करीब 4 लाख 33 हजार 733 वोट लेते हुए कांग्रेस के प्रत्याशी चौ. भजनलाल को करीब 1 लाख 48 हजार वोटों के अंतर से पराजित किया। इस जीत के बाद स्वामी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री भी रहे। चौ. भजनलाल के राजनीतिक जीवन में यह पहली और आखिरी हार थी। आई.डी. स्वामी के दामाद और आई.ए.एस. अधिकारी रणबीर शर्मा लोक स्वराज पार्टी के संस्थापक हैं। रणबीर शर्मा ने कुछ समय तक आम आदमी पार्टी की राजनीति भी की। करीब एक दर्जन आई.ए.एस. और आई.पी.एस. अधिकारी न केवल राजनीति में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। हालांकि आई.डी. स्वामी, कृपा राम पूनिया, बृजेंद्र ङ्क्षसह, सुनीता दुग्गल और अभय सिंह यादव को छोडक़र कोई अधिकारी हरियाणा की राजनीति में अभी तक खुद को स्थापित नहीं कर पाया।
कृपाराम पूनिया ने सियासत में चमकाया नाम
इसी तरह से कृपा राम पूनिया भी सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद राजनीति में आ गए। 1985 में कृपाराम पूनिया रिटायर हुए। इसके बाद वे देवीलाल के पाले में आ गए और 1987 में पहली बार विधायक चुने गए। कृपा राम पूनिया को देवीलाल ने अपनी सरकार में मंत्री तक बनाया। 1987 के विधानसभा चुनाव ने बरौदा सीट से करीब 50,882 वोट लेते हुए कृपाराम पूनिया ने कांग्रेस के उम्मीदवार श्याम चंद्र को 37,087 वोट के अंतर से पराजित किया। इसके बाद चौ. देवीलाल की सरकार में वे उद्योग मंत्री रहे। खास बात यह है कि चौ. ओमप्रकाश चौटाला के एक भाषण से नाराज होकर उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। गुलाब नबी आजाद एवं माधवराव ङ्क्षसधिया की मदद से 1991 में उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन की। 2005 में उन्होंने बरौदा सीट से आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और वे 10,356 वोट के साथ चौथे स्थान पर रहे। 2017 में बसपा में आए गए और दिसंबर 2018 में फिर से वे कांग्रेस में शामिल हो गए। इसी तरह से बैंक अधिकारी रहे हेतराम 1988 में पहली बार सिरसा से उपचुनाव जीतकर लोकदल की टिकट पर सांसद चुने गए और दूसरी बार वे 1989 में सांसद बने। इसी तरह से 2013 में एच.सी.एस. अधिकारी अभय यादव ने सरकारी नौकरी से वी.आर.एस. ले लिया। वर्तमान में वे नांगल चौधरी से विधायक हैं। पी.एच.डी. डिग्रीधारक अभय यादव ने 2014 का चुनाव लड़ा, मगर उन्हें कामयाबी नहीं मिली। 2019 में उन्होंने नांगल चौधरी से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ते हुए 55 हजार 529 वोट लेते हुए जननायक जनता पार्टी के मूलाराम को करीब 20 हजार 615 वोट के अंतर से हराया। 2014 में सुनीता दुग्गल ने भी सरकारी नौकरी से वी.आर.एस. लिया और रतिया से विधानसभा का चुनाव लड़ा। 2019 में दुग्गल सिरसा से सांसद चुनी गईं। कई जिलों में डी.सी. रह चुके बृजेंद्र ङ्क्षसह भी वी.आर.एस. लेकर सियासत में आए और वे 2019 में हिसार से सांसद चुने गए। बृजेंद्र ङ्क्षसह पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र ङ्क्षसह के बेटे हैं।
इन अफसरों ने भी सियासत में आजमाई किस्मत
रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी आर.एस. चौधरी इनैलो की सक्रिय राजनीति कर रहे हैं और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं। जेल में बंद ओमप्रकाश चौटाला की गैर मौजूदगी में चौधरी पार्टी के थिंक टैंक के तौर पर काम करते आ रहे हैं। इसी तरह से आई.ए.एस. युद्धवीर ख्यालिया ने रिटायरमैंट के बाद सियासत में कदम रखा। ख्यालिया ने साल 2014 में हिसार संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा। फिलहाल ख्यालिया राजनीति से दूरी बनाए हुए हैं। आई.ए.एस. अधिकारी रहे प्रदीप कासनी भी राजनीति में आए पर अधिक सक्रिय नहीं रहे। हरियाणा के रिटायर्ड डी.जी.पी. हंसराज स्वान राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय रहे। हंसराज स्वान ने 1996 में सिरसा संसदीय सीट से हविपा-भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। उन्होंने कई साल तक भाजपा की राजनीति की। रिटायर्ड ए.डी.जी.पी. रेशम सिंह का लगाव भी भाजपा से रहा है। रेशम सिंह ने 2014 में पटौदी सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गए। जबकि रिटायर्ड डी.जी.पी. महेंद्र सिंह मलिक इनैलो की सक्रिय राजनीति कर रहे हैं। महेंद्र सिंह मलिक जाट सभा के प्रधान भी हैं और ओमप्रकाश चौटाला व अभय चौटाला के प्रति उनकी दमदार निष्ठा है। महेंद्र सिंह मलिक की पत्नी कृष्णा मलिक ने सोनीपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। उन्हें 198866 वोट मिले और वे तीसरे स्थान पर रहीं। इसी तरह से आई.ए.एस. रहे बी.डी. ढालिया तो इनैलो के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे।
बैंक की नौकरी छोडक़र राजनीति में आए विज
प्रदेश के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज बैंक की नौकरी छोडक़र राजनीति में आए और वे 1990, 1996, 2000, 2009, 2014 और 2019 में अ बाला कैंट से विधायक चुने गए। 2014 से लेकर अब तक कैबीनेट मंत्री हैं। गृह और स्वास्थ्य जैसे महकमे उनके पास हैं। विद्यार्थी जीवनकाल से ही विज अखिल भारतीय विद्यार्थी संघ से जुड़ गए। वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से काफी प्रभावित रहे। साल 1990 में अंबाला कैंट में उपचुनाव हुआ। विज ने पहले ही चुनाव में जीत हासिल की और विधायक निर्वाचित हुए। 1990 में ही अनिल विज को भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। साल 1991 के विधावनसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। 1996 और 2000 का चुनाव विज ने अंबाला कैंट से आजाद उम्मीदवार के रूप में लड़ा। 2005 में चुनाव हार गए। इसके बाद साल 2009, 2014 और 2019 में लगातार तीन चुनाव जीतकर हैट्रिक लगाई।