रीना सेठी के मात्र 6 महिने के कार्यकाल मे हुए नगर पालिका घोटालो से डूब रहा कांडा का जहाज,गोकुल सट्टा बाजार का फेवरेट है, वहीं गोपाल कांडा चारो खाने चित्त
रीना सेठी के मात्र छह महिने के कार्यकाल मे हुए घोटालो से डूब रहा कांडा का शीप।
किसी विधायक ने नहीं करवाया सिरसा विकास, जातिवाद से जीते चुनाव।
सिरसा। जब भी कोई व्यक्ति, व्यक्तियो का समूह और जाति विस्थापित होकर किसी अन्य स्थान पर रहने लगते है तो स्वाभाविक तौर पर वो एकजुट होकर रहते है, एक दूसरे की मदद करते है और खूब मेहनत कर अपने विस्थापन से पहले के उच्च जीवन स्तर को पुनः हासिल करने के काम करने से ना तो जी चुराते है और ना ही छोटा-बड़ा काम सोचकर पीछे हटते है। कडीं मेहनत और जातिय एकजुटता इनकी सफलता का मूलमंत्र है।
यही कारण रहा कि डाक्टर मंगल सैन रोहतक विधान सभा क्षेत्र के कैम्प एरिया से भारी बहुमत से विजयी होते रहे। इसी तरह सिरसा विधान सभा क्षेत्र से लक्ष्मण दास आरोडा ने अरोड़ा समाज का नेतृत्व किया। अरोड़ा समाज ने हमेशा लक्ष्मण दास अरोड़ा का एकजुट होकर साथ दिया और लक्ष्मण दास अरोड़ा ने भी अपने समर्थको को कभी पीठ नही दिखाई। यही विशेषता के चलते लक्ष्मण दास अरोड़ा ने ताउम्र अपने कार्यकर्ताओ और समाज के लोगो के दिलो पर राज किया। उनके सर्मथक आज भी गोकुल सेतिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।
सिरसा के एक अखबार के अनुसार इसी मजबूत जनाधार की बदौलत कांग्रेस उम्मीदवार गोकुल सेतिया ने सिरसा विधान सभा क्षेत्र मे छोटी उम्र मे ही राजनीति के उच्च स्तरीय मुकाम हासिल कर युवा और संघर्षशील नेता की छवि बनाई। वहीं दानवीर और ज़बान के धनी अग्रवाल समाज ने राजस्थान के मारवाड से समस्त भारत मे उद्योग और व्यापार मे नाम कमाया। परंतु राजनीति में सक्रिय नहीं रहे। कुछ परिस्थितया ऐसी हुई की सिरसा विधान सभा क्षेत्र की राजनीति अरोड़ा और अग्रवाल समाज के इर्द-गिर्द धूमती रही है। सिरसा विधान सभा क्षेत्र मे अग्रवाल समाज के लगभग तैंतीस हजार वोट है।
लक्ष्मण दास अरोड़ा का परिवार हो या कांडा परिवार दोनो ने जातीय राजनीति कि। दोनो ने सिरसा विधान सभा क्षेत्र के विकास के लिए लिए कुछ नहीं किया। एक परिवार अरोड़ा बिरादरी के वोटो पर तो दूसरा परिवार अग्रवाल वैश्य समाज के वोट लेकर विधायक-मंत्री बनते रहे। ना लक्ष्मण दास अरोड़ा ने सिरसा मे युवाओ को रोजगार देने के लिए कोई बड़ा उद्योग या प्रोजेक्ट लगाया , ना ही गोपाल कांडा ने ढका तोड़ा। परिणामस्वरूप सिरसा औद्योगिक रूप से पिछडता चला गया। युवाओ को बेरोजगारी का सामना करना पड़ा जिसका नतिजा यह निकला की बेरोजगार युवा नशे की गर्त में डूब गए।
चिट्टा लगभग सिरसा के पचास प्रतिशत घरो तक पंहुच गया। गोपाल कांडा के औद्योगिक शहर बद्दी (हिमाचल) की तर्ज पर सिरसा को औद्योगिक क्षेत्र के रूप मे विकसित करने के दावे महज जुमले साबित हुए। गोपाल कांडा 2009 से 2024 तक की लंबी समयावधि के दौरान सिरसा मे उद्योग लगाना तो दूर, इसके लिए किसी मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री के साथ विशेष बैठक तक नहीं कर पाए। केवल चंडीगढ में मुख्यमंत्री निवास के बाहर फोटो- शेसन करवाने और व्टसअप ग्रुपो मे फोटो डालवाकर यह जताने की कोशिश करते रहे कि मुख्यमंत्री से उनके मधुर संबंध है, परंतु इन मुलाकातो में CLU के आलावा सिरसा मे बड़ा औद्योगिक प्रोजेक्ट लगाने की बात होती तो शायद कुछ लाभ बेरोजगारो को मिल पाता।
टेक्नीकल शिक्षा के क्षेत्र मे सिरसा आज भी पिछडा है। बच्चे दसवीं के बाद कोटा, दिल्ली या चंडीगढ का रूख करने को मजबूर है। दोनो घरानो ने जातिवाद के सहारे नैय्या पार लगाने की ठान रखी थी, इसलिए शिक्षा के लिए बेहतर संस्थान बनाने की जरूरत महसूस ही नही की। CDLU और पन्नीवाला मोटा मे स्थित ईंजिनियरिंग कॉलेज आदी सब चौटाला सरकार की देन है। इसमे ना गोपाल कांडा का कोई योगदान है और ना ही लक्ष्मण दास अरोड़ा के परिवार का।
गोपाल कांडा ने 2019 में वायदा किया था कि सिरसा में नशा मुक्ती केंद्र स्थापित करवाएंगे। 2024 के चुनाव मे आज भी नशा मुक्ती केंद्र की स्थापना करवाने का वचन देते धूम रहे है। जबकि बेरोजगार युवा नशे के कारण बर्बाद हो रहे है।
वास्तव मे गोपाल कांडा अग्रवाल समुदाय के वोटो, बिकाऊ वोटो, फर्जी फर्म संचालको, भू-माफिया जो अवैध कालोनिया काटने और फिर उनमे सरकारी खजाने से गलियां- सडके बनाने का काम करवाने वालो के भरोसे विधायक बनना चाहते है। परंतु अभी दिल्ली दूर है।
गोपाल कांडा भी जानते है कि मात्र पंद्रह-बीस मिनट की बरसात के बाद सिरसा शहर झील मे तब्दील हो जाता है। सीवरेज बैक मारते है, दुकानदारो का कामकाज ठप्प हो जाता है। इसके लिए गोपाल कांडा के प्रयास भ्रष्टाचार की बाढ़ मे बह गए। रीना सेठी और उनको नगर परिषद का चेयरपर्सन बनाने वाले उनके आका तो गंगा नहा गए। अधिकारी भी मालामाल हो गए। स्ट्राम वाटर प्रोजेक्ट फ्लाप हो गया। इस प्रोजेक्ट को लाने के लिए गोबिंद कांडा ने बड़े-बड़े दावे किए परंतु सभी को पता है कि केंद्र सरकार की अमरूता योजना के तहत सारे देश मे शहरो-कस्बो को जलभराव की स्थिती से मुक्ती दिलवाने के यह योजना बनी थी।
गोबिंद कांडा का बादल फट जाने के बाद भी एक बूंद पानी शहर मे कहीं खड़ा नहीं होने के दावे की विडिओ खूब वायरल हो रही है। क्योंकि इसी स्टारम वाटर प्रोजेक्ट पर 37 करोड रूपय खर्च करने के बाद जब इससे बरसात मे एक बूंद पानी की भी निकासी नहीं हुई तो सबको मालूम हो गया कि 37 करोड रूपय डकारने वालो मे दानवीर बंधुओ ने कितना माल बनाया। परिणामस्वरूप मात्र 20-30 मिनट बरसात हो जाने के बाद जब शहर जलमग्न हो जाता है तो छात्र स्कूल नहीं जा पाते, दुकानदारी ठप्प हो जाती है और लोगो की रसोई तक सीवरेज बैक मारने के बाद गंदा पानी पंहुच जाता है, तब सभी शहरवासियो के साथ-साथ अग्रवाल समुदाय के लोग-बाग शीप को भी डूबोने का प्रण करते साफ-साफ नजर आते है।
यह प्रोजेक्ट गोपाल कांडा की हलोपा पार्षद रीना सेठी के चेयरपर्सन वाले कार्यकाल मे मंजूर हुआ और आरंभ भी हुआ, इस समयावधि में अधिकारियो, ठेकेदार और गोबिंद कांडा को कुटिया के साथ एमडीएलआर कार्यालय में एक साथ मिटिंग-सिटिंग करते देखा जाता रहा। शहरवासी कांडा बंधुओ से यह उम्मीद करते थे कि इतना पैसा होने के बाद अब कांडा बंधुओ ने कौन से किसी सरकारी ठेके मे कमीशन लेनी है। गोपाल कांडा तो सरेआम यह दावा करते थे कि आपके भाई को बाबा जी ने इतना सक्षम बनाया है कि यदि सरकार विकास कार्य के लिए एक रूपय देगी तो वह सवा रूपया लगाएंगे। परंतु हो गया सब उल्टा।
रीना सेठी के कार्यकाल मे नगरपरिषद मे अनेक घोटाले-गबन हुए जैसा कि पामॅ वृक्ष, ईंगलिश रोज, बैंच,सड़क पर पिली पट्टी, ओपन जीम, डस्टबीन खरीद-वितरण, सफाई का ठेका, स्ट्रीट लाइट खरीद और सबसे बड़ा घोटाला हुआ गलियो के निर्माण कार्य मे। अग्रसेन काॅलोनी, चत्तरगढ पट्टी, भादरा बाजार सहित शहर में इस दौरान बनी गलियो मे से 95 प्रतिशत गलियां तीन-चार महिनो मे ही ताश के पत्तो की तरह बिखर गई।
परंतु ऐसा नहीं है कि नगरपरिषद मे घपलेबाजी केवल रीना सेठी के कार्यकाल मे हुए हो। जिसको जब भी मौका मिला शहर के विकास की परवाह किए बगैर हर किसी ने सरकारी खजाने को जमकर लूटा। इसका प्रमाण सिरसा मे 1984 मे चालिस वर्ष पहले बनी ऑटो मार्किट है। यहां कपड़े के शो रूम वाले से लेकर रेहड़ी लगाने वाले तक के जातीय भाइयो को प्लाट दिए गए। आटोमोबाइल का काम करने वाले प्लाट लेने से वंचित रह गए। जिसका खामियाज़ा आजतक सारा शहर पिछले चालीस साल से भुगत रहा है।
परंतु जातीय कार्ड खेलने में गोपाल कांडा इस बार फ्लाप हो गए, उनका पत्ता सही नहीं पड़ा। अग्रवाल समाज के अस्सी प्रतिशत लोग उनसे नाराज है, निराश है। इसका कारण शहर का विकास ना होना और नगर परिषद मे प्रॉपर्टी आई डी के नाम पर चला भ्रष्टाचार, किसी कार्यालय मे सुनवाई ना होना छोटे बंधु (अनुज) द्वारा मात्र कालोनिया काटने मे व्यस्त रहना, विधायक जी का सिरसा ना आना और ना विधान सभा में शहर/ विधान सभा क्षेत्र की समस्याओ के बारे आवाज उठाने चंडीगढ जाना।
इसके अलावा -"गोपाल के अतिरिक्त और कौन" के फेर मे सीट को अपने समाज के व्यक्ती मे रहे के नाम पर वोट करने वाले अग्रवाल समाज को यह समझ आ गई कि कांडा बंधु अग्रवाल समाज को महत्व ना देकर केवल मात्र खंजानचियो वाली गली मे रहने वाले पांच-छह परिवारो तक और धन्ना सेठ अग्रवाल को ही अग्रवाल मानता है, बाकि अग्रवालो को मात्र वोट बैंक समझते है।
गोपाल कांडा कभी किसी भी मध्यम वर्गीय अग्रवाल समुदाय के परिवार मे हो रही शादी-ब्याह मे नहीं गए । इनका निमंत्रण पत्र आने पर लक्ष्मण गुर्जर, हरि प्रकाश शर्मा को ग्यारह सौ रूपय का शगन देकर भेजा जाता है। जैसे अग्रवाल समाज के व्यक्ती ने इन्हे शगन लेने के लिए शादी-ब्याह का आमंत्रण दिया था। यदि किसी विवाद में वैश्य समाज के व्यक्ती का नुकसान हो रहा हो तो भी बंधुओ ने अग्रवाल की जमकर काट की , यह सोचकर कि इसको क्या पता लगना है, इसने कहां जाना है, दूसरे को अपने साथ जोड़ो। अग्रवाल समुदाय कांडा बंधुओ की यह जोड़-घटाव की राजनीति समझ गया और अस्सी प्रतिशत अग्रवालो ने कांडा से किनारा करने का फ़ैसला कर लिया।
जिसका परिणाम यह है की आज सट्टा बाजार में गोकुल सेतिया का भाव 32 पैसे है और गोकुल की 15500 वोटो की बढत भी सट्टा बाजार दिखा रहा है । गोकुल सट्टा बाजार का फेवरेट है, वहीं गोपाल कांडा चारो खाने चित्त।